गुरुवार, 20 अप्रैल 2023

हमारा देश आगे जा रहा, ये क्यों नहीं दिखता !

दोस्तों! वैसे तो मैं राजनीति को अपनी ग़ज़लों से दूर रखता हूँ पर कभी-कभी जब बातें हद से बाहर जाने लगती हैं तो कुछ पंक्तियाँ बन जाती हैं और वो ग़ज़ल के किसी शेर में समाहित हो जाती हैं | इस बार एक पूरी ग़ज़ल वर्तमान हालत पर प्रस्तुत है:-

हमारा देश आगे जा रहा, ये क्यों नहीं दिखता !
समूचा विश्व यह दोहरा रहा, ये क्यों नहीं दिखता !
 
वो जबसे आ गए सत्ता में सब दुश्मन समझते हैं,
तरक्की देश ये करता रहा, ये क्यों नहीं दिखता !
 
वजीरों के आज़म हैं, उन्हीं को गालियाँ देकर,
विपक्षी हर बुरा कहता रहा, ये क्यों नहीं दिखता !
 
किया है काम जो अच्छा, उसे भी बस बुरा कहते,
विरोधी देखकर अन्धा रहा, ये क्यों नहीं दिखता !
 
चिकित्सा, सूचना, सेवा, सुरक्षा और उत्पादन,
में परचम देश का लहरा रहा, ये क्यों नहीं दिखता !
 
कभी कोई भी सत्ता खुश सभी को कर नहीं सकती,
हमेशा हाल ये होता रहा, ये क्यों नहीं दिखता !
 
समाचारों की दुनिया के, तो कुछ साहित्य वालों का,
जो सौतेला भरा रिश्ता रहा, ये क्यों नहीं दिखता !
 
कहीं पर भूख से मरते, तो आटे के लिए लड़ते,
यहाँ कोई नहीं भूखा रहा, ये क्यों नहीं दिखता !
 
सड़क, पानी मुहैया है, ये बिजली कम सताती है,
मगर तब हाल क्या इनका रहा, ये क्यों नहीं दिखता !
 
बने हैं आत्मनिर्भर हम, कई देशों से बेहतर हैं,
बढ़े निर्यात का चर्चा रहा, ये क्यों नहीं दिखता !
 
दिलों पर साँप कितनों के, यहाँ हैं लोटते रहते,
थके बिन काम वो करता रहा, ये क्यों नहीं दिखता !
 
बढ़ा सम्मान तो देशी, विदेशी जल रहे हैं सब,
सभी का सामना करता रहा, ये क्यों नहीं दिखता !
 
बनाई नीतियाँ जितनी, तरक्की के लिए सब थीं,
कड़क वो फैसले लेता रहा, ये क्यों नहीं दिखता !
 
हमारे देश-सा नेता पड़ोसी देश की चाहत,
वहाँ हर शख्स ये कहता रहा, ये क्यों नहीं दिखता !
 
चुनावी साल आते ही सभी मिल वार करते हैं,
अकेला वार हर सहता रहा, ये क्यों नहीं दिखता !
 
दुखों की जब घड़ी आई, हमारे साथ रहता है,
नया उत्साह है भरता रहा, ये क्यों नहीं दिखता !
 
कई पूर्वाग्रही आलोचनाएं सिर्फ़ करते हैं,
मगर इक काम भी अच्छा रहा, ये क्यों नहीं दिखता !
 
किसे है देश की चिंता, किसे परिवार की चिंता,
सभी को कौन बस छलता रहा, ये क्यों नहीं दिखता !
 
समर्थन चीन का, इंग्लैण्ड का, करके कनाडा का,
हमें अब कौन है भड़का रहा, ये क्यों नहीं दिखता !
 
चुनी सरकार को कुछ दल ये तानाशाह कहते हैं,
किला उनका मगर ढहता रहा, ये क्यों नहीं दिखता ! 
 
मलाई लूटकर घर की तिजोरी थे भरे बैठे,
उन्हीं का भ्रष्ट गुट बनता रहा,ये क्यों नहीं दिखता !
 
अभी भी पूर्वजों के नाम पर लड़ते चुनावों को,
सभी का काम यूँ मंदा रहा, ये क्यों नहीं दिखता !
 
सभी कुछ लूटकर, करता रहा जो रोज घोटाले;
सबक ईमान का सिखला रहा, ये क्यों नहीं दिखता !
 
हमेशा भ्रष्ट या अपराधियों का पक्ष लेते हैं,
कभी उनसे बहुत रिश्ता रहा, ये क्यों नहीं दिखता !
 
चिढ़ें हैं वे सभी पहले कभी जो लाभ पाते थे,
कहाँ से, क्या, किसे मिलता रहा, ये क्यों नहीं दिखता !
 
चुना जनता ने पहले था, उसे भी देशसेवा को,
वो बस अपना घड़ा भरता रहा, ये क्यों नहीं दिखता !
 
दलों में चाटुकारों ने बढ़ाई अहमियत अपनी,
हटा जो बात सच करता रहा, ये क्यों नहीं दिखता !
 
सही सरकार को कैसे हटाएं सोचते कुछ दल,
न कोई और अब मुद्दा रहा, ये क्यों नहीं दिखता !
 
अगर यू०पी० में घटना हो, सभी दौड़े चले आते,
न जाते, कुछ कहीं होता रहा, ये क्यों नहीं दिखता !
 
वे चुप हैं जीतकर, पर हार पर है ई० वी०एम० दोषी,
चलन संदिग्ध-सा उनका रहा, ये क्यों नहीं दिखता !
 
सियासतदान के वारिस समझते राजशाही है,
हमेशा दम्भ ही पलता रहा, ये क्यों नहीं दिखता !
 
न लेना है न देना है, विपक्षी और सत्ता से,
हमेशा सच ‘अनघ’ कहता रहा, ये क्यों नहीं दिखता !