बुधवार, 1 सितंबर 2010

वक्त ये एक-सा नहीं होता

क्या! आप ने याद मुझे किया! लीजीए मैं आ गया अपनी इस ग़ज़ल के साथ........

वक्त ये एक-सा नहीं होता।
वक्त किसका बुरा नहीं होता।

वक्त की बात है नहीं कुछ और,
कोई अच्छा-बुरा नहीं होता।
इस जहाँ में नहीं जगह ऐसी,
दर्द कोई जहाँ नहीं होता।

हों चमन में अगर नहीं काटें,
फूल कोई वहाँ नहीं होता।

पल जो ग़मगीन गर नहीं आते,
वक्त ये खुशनुमा नहीं होता।

प्यार क्या है नहीं समझते सब,
गर कोई बेवफा नहीं होता।

जब कसौटी पे वक्त कसता है,
हर कोई तब खरा नहीं होता।

होता भगवान पर यकीं सबको,
जब कोई आसरा नहीं होता।

हर जगह आप ही तो होते हैं,
ऐ ‘अनघ’ दूसरा नहीं होता।

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रविवार, 6 जून 2010

कौन जिन्दा है कब तलक जाने

आज एक अरसे बाद मैं फिर लौटा हूँ ब्लाग की दुनिया में......है ....! जब मैं वाराणसी से बाहर था तो मेरे कार्यक्षेत्र के एक पुराने एडवोकेट और वाराणसी के काव्य-संसार के एक सशक्त हस्ताक्षर श्री रामदासअकेलाजी ( जिनकी गज़लें आप बनारस के कवि और शायर/रामदास अकेला में पढ़ चुके हैं ) ; इस दुनिया को छोड़ गये इसी परिस्थिति में पूर्व की लिखी गयी मुझे अपनी कुछ पंक्तियाँ याद गयीं जो मैं आप से जरूर बांटना चाहूँगा.......

कौन जिन्दा है कब तलक जाने ।

मुंद ये जायेगी कब पलक जाने ।

चार दिन के जमीं पे हैं मेहमां,

फिर बुला लेगा कब फलक जाने ।

ज़िन्दगी ज्यों घड़ा है मिट्टी का,

फूट कर कब पड़े छलक जाने ।

मौत वो जाम है जिसे पीकर,

सूख जाता है कब हलक जाने ।

जो गए ज़िन्दगी से दूर ‘अनघ’,

क्या दिखेगी कभी झलक जाने|

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बुधवार, 17 मार्च 2010

जब भी मन विचलित होता है

जब भी मन विचलित होता है।
भावों से सिंचित होता है।

झूठ कहीं पर छिप जाता है,
जब भी सच मुखरित होता है।

कुछ भी अच्छा काम करूँ तो,
क्यों अक्सर बाधित होता है।

बीती बातें याद करूँ जब,
हर छण ज्यूं चित्रित होता है।

सच्चे मन से काम करो तो,
मिलता जो इच्छित होता है।

धारावाहिक अब हैं ऐसे,
कोमल मन दूषित होता है।

कोई अच्छा काम करो तो,
हृदय ‘अनघ’ पुलकित होता है। 

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