बुधवार, 7 जून 2017

अम्मा चली गयीं मेरे पापा चले गए

लगभग एक साल के अंतराल पर मैंने अपने माता-पिता दोनों को (24-3-2016 को माँ और 24-5-2017 को पिता को) खो दिया है।  प्रस्तुत है इस समय मेरे मन की भावना (अभी मैंने कोई मात्रा या बहर नही देखा है, वो बाद में देखूँगा) ...
अम्मा चली गयीं मेरे पापा चले गए।
दुनिया में मुझको छोड़ अकेला चले गए।
 
बचपन के लाड़-प्यार वो दुलार अब कहाँ,
देकर वो मुझको दौर सुनहरा चले गए।
 
वो जब तलक थे दिल से मैं बच्चा ही था अभी,
लेकर ज्यूँ मेरे दिल का वो बच्चा चले गए।
 
होती है अहमियत किसी की जाने के बाद ही,
अहसास हो रहा है जब वो सहसा चले गए।
 
अब भी यकीं नही मुझे क्यों हो रहा है ये,
कल तक तो साथ-साथ थे, यूँ कहाँ चले गए।
 
उनकी कमी खलेगी अब ताउम्र ही मुझे, 
अरमान उनके पूरे हों, वो जहाँ चले गए।

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गुरुवार, 11 मई 2017

एक रचना/ प.धर्मशील चतुर्वेदी जी की जयन्ती पर विशेष

काशी की अमर विभूति प.धर्मशील चतुर्वेदी जी की जयन्ती  पर विशेष...

"धर्मशील जी व्यक्ति नहीं थे, संस्कृति के संवाहक थे |
काशी की हर एक सभा के आजीवन संचालक थे |
काशी की हर एक सभा में अट्टहास उनका गूँजा,
उनके जैसा जिंदादिल अब और नहीं कोई दूजा,
कला-पारखी, ज्ञानवान थे, निश्छल मानों बालक थे.....
धर्म, कला, साहित्य सभी पर, उनका दखल बराबर था,
न्यायालय या कोई सभा हो सबमे उनका आदर था,
व्यंग्यकार, अधिवक्ता, उम्दा लेखक और विचारक थे....."