शुक्रवार, 10 मई 2019

काशी पर एक कविता- प्रसन्न वदन चतुर्वेदी

तीन लोक से न्यारी काशी, इसकी अमर कहानी है |
धर्म,कला,साहित्य, चिकित्सा, संस्कृति की राजधानी है |
1.
यहाँ पे बाबा विश्वनाथ हैं, संकटमोचन बसते हैं,
माँ दुर्गा, अन्नपूर्णा जी हैं, भैरव जी भी रहते हैं,
काशी में गंगा जी उत्तरवाहिनी होकर बहती हैं,
है नगरी प्राचीन कई घाटों की निशानी कहती है,
सारनाथ में यहीं बुद्ध ने प्रथम बार उपदेश दिया,
जैन धर्म के पार्श्वनाथ जी ने काशी में जन्म लिया,
रामानंद, कबीर और रैदास यहीं के निवासी थे,
धन्वन्तरि, पतंजलि, ऋषि अगस्त्य यहाँ के वासी थे,
श्री वल्लभ आचार्य, शंकराचार्य, पाणिनि यहाँ रहे,
वेद व्यास,  तुलसी, कबीर ने यहीं पे कितने ग्रन्थ रचे,
रानी लक्ष्मीबाई ने भी काशी में ही जन्म लिया,
झाँसी की रानी बन जिसने जीवन अपना धन्य किया,
सभी तरह के शल्य-क्रिया के प्रथम प्रणेता सुश्रुत थे,
काशी उनकी कर्मभूमि थी आयुर्वेद-चिकित्सक थे,
राजा हरिश्चन्द्र की नगरी, इसका कोई न सानी है......... 
तीन लोक से न्यारी काशी, इसकी अमर कहानी है |

2.
भारतेन्दु श्री हरिश्चन्द्र ने एक नया उत्थान किया,
हिन्दी को इक नई धार दी, एक नई पहचान दिया,
प्रेमचन्द, जयशंकर, देवकीनन्दन, हजारी द्विवेद्वी,
रामचन्द्र शुक्ला, विद्यानिवास, धूमिल और तेग अली,
बलदेव उपाध्याय, क्षेत्रेशचन्द्र, वागीश शास्त्री यहाँ रहे,
काशी की धरती पर ही नज़ीर बनारसी ने शेर कहे,
रामदास, गिरिजा देवी, छन्नू, राजन-साजन मिश्रा,
काशी की धरती से ही इनके सरगम का स्वर है गूंजा,
रविशंकर सितारवादन में तो शहनाई में बिस्मिल्ला,
तबले में गुदई, किशन, अनोखेलाल मिश्र की  ना, धिन, ना;
एन.राजम, ओंकारनाथ की कर्मभूमि ये काशी है,
लालबहादुर शास्त्री जी की जन्मभूमि भी काशी है,
है महामना की धरती ये शिक्षा की नगरी कहलाती,
शिव की नगरी, दीपों का शहर, मंदिर का शहर भी है काशी,
विद्वानों की है ये नगरी, प्राचीनतम निशानी है.......... 
तीन लोक से न्यारी काशी, इसकी अमर कहानी है |

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