बिना इंसानियत इन्सान सच्चा हो नहीं सकता |
हुआ अपना नहीं जो वो किसी का हो नहीं सकता |
अगर तुलना करें इक घाव की पाया जो गैरों से,
मिला अपनों से उससे तो वो गहरा हो नहीं सकता |
यही हम सोचते अक्सर जो अनहोनी कभी होती,
सरासर झूठ है ये बात, ऐसा हो नहीं सकता |
हमेशा लील जाते हैं बड़े अपनों से छोटों को,
गिरा सागर में दरिया तो वो दरिया हो नहीं सकता |
हुए जब भी अलग माँ-बाप बच्चे पर बुरी बीती,
पिता का हो नहीं सकता या माँ का हो नहीं सकता |
जगह दिल में किसी के भी बड़ी मुश्किल से बनती है,
अगर दिल टूट जाए फिर भरोसा हो नहीं सकता |
न मानो तुम भले लेकिन सही ये बात है तो है,
गलत मंजिल अगर हो ठीक रस्ता हो नहीं सकता |
दिलों को जीत सकते हैं, पिघल सकते हैं पत्थर भी,
मुहब्बत की जुबां से ये कहो क्या हो नहीं सकता |
कमी तो दौलतों की रौशनी में हो भी सकती है,
अगर हो इल्म की दौलत, अँधेरा हो नहीं सकता |
सितारे अब कहे जाते यहाँ मशहूर कुछ चेहरे,
मगर जो रौशनी ना दे सितारा हो नहीं सकता |
सभी के वास्ते भगवान ने सौंपी अलग नेमत,
जो तेरा है वो तेरा है, ‘अनघ’ का हो नहीं सकता |
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वाह बहुत ही शानदार और लाजवाब, काबिले तारीफ प्रस्तुति आदरणीय सर!
जवाब देंहटाएंहमारे ब्लॉग पर भी आपका हार्दिक स्वागत है कृपया एक बार जरूर आने का कष्ट करें आप की अति महान कृपा होगीhttp://dbjmc.blogspot.com/2021/10/blog-post_23.html
बहुत सुंदर लाजवाब गजल ।
जवाब देंहटाएंक़ाबिल-ए-दाद ग़ज़ल है यह आपकी
जवाब देंहटाएंसुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंबिना इंसानियत इन्सान सच्चा हो नहीं सकता |
जवाब देंहटाएंहुआ अपना नहीं जो वो किसी का हो नहीं सकता |बहुत सुंदर,