बुधवार, 20 अप्रैल 2022

ग़ज़ल-संग्रह 'जब भी सोचूँ अच्छा सोचूँ' एवं दोहा-संग्रह 'डाल-डाल टेसू खिले' का विमोचन

 रामनवमी के पावन अवसर पर दिनांक 10-04-22 को राजकीय जिला पुस्तकालय, वाराणसी में हम दंपत्ति श्रीमती कंचनलता चतुर्वेदी कृत दोहा-संग्रह 'डाल-डाल टेसू खिले' और प्रसन्न वदन चतुर्वेदी 'अनघ' कृत ग़ज़ल-संग्रह 'जब भी सोचूँ अच्छा सोचूँ' का विमोचन सम्पन्न हुआ। कार्यक्रम में अध्यक्ष श्री हीरालाल मिश्र 'मधुकर', मुख्य अतिथि- डा० चन्द्रभाल 'सुकुमार', मुख्य वक्ता डा० इन्दीवर पाण्डेय, विशिष्ट अतिथि- डा० रामसुधार सिंह, श्री उमाशंकर चतुर्वेदी 'कंचन', श्री दीनानाथ द्विवेदी 'रंग' जी के साथ-साथ प्रकाशक छतिश द्विवेदी, श्री केशव शरण, श्रीमती मंजरी पाण्डेय, श्रीमती माधुरी मिश्रा, श्री सूर्यप्रकाश मिश्र, श्री योगेन्द्रनारायण चतुर्वेदी 'वियोगी', श्री महेन्द्रनाथ तिवारी 'अलंकार', श्री संतोष 'प्रीत', श्री धर्मेन्द्र गुप्त 'साहिल', श्री सीमांत प्रियदर्शी, श्री गौतम अरोड़ा 'सरस', श्री विन्ध्याचल पाण्डेय 'सगुन', श्री शरद श्रीवास्तव, श्रीमती नसीमा निशा, श्रीमती झरना मुखर्जी, श्री आलोक सिंह, श्री एखलाख भारतीय, श्री सिद्धनाथ शर्मा, श्री टीकाराम शर्मा, श्री लियाकत अली, श्री कमला प्रसाद 'जख्मी', श्री विकास पाण्डेय, श्री नवलकिशोर गुप्त, श्रीमती श्रुति गुप्त, श्री परमहंस तिवारी, श्री सुनील सेठ, श्री ओमप्रकाश चंचल, श्री सुनील श्रीवास्तव, श्री सिद्धार्थ सिंह, सुश्री प्रियंका तिवारी एवं नगर के अनेक रचनाकार एवं गणमान्य नागरिक उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन राजकीय पुस्तकालय, वाराणसी के पुस्तकालयाध्यक्ष श्री कंचन सिंह परिहार ने किया। कार्यक्रम के प्रारम्भ में कु० शाम्भवी चतुर्वेदी ने संगीतमय सरस्वती वन्दना एवं भजन प्रस्तुत किया तथा प्रसन्न वदन चतुर्वेदी द्वारा अपनी गजलों की संगीतमय प्रस्तुति की गई। डा० शरद श्रीवास्तव ने प्रारम्भ में अतिथियों का स्वागत किया और चतुर्वेदी दम्पत्ति हेतु एक गीत प्रस्तुत कर उन्हें स्मृति चिन्ह प्रदान किया। अंत में संतोष कुमार प्रीत ने कार्यक्रम में सबकी उपस्थिति के लिए आभार व्यक्त किया।| कुछ छायाचित्र...💐💐💐💐💐








 





बुधवार, 6 अप्रैल 2022

जब भी सोचूँ अच्छा सोचूँ


 

न्यायालय में न्याय नहीं है


 

बिना इंसानियत इंसान सच्चा हो नहीं सकता


 

है कठिन इस ज़िन्दगी के हादसों को रोकना


 

बढ़े हम फ़ासलों तक जा रहे हैं


 

न पूछो कौन क्या-क्या छोड़ बैठे


 

सुनने के लिए है न सुनाने के लिए है


 

दिलों के बीच नफ़रत आ गई है


 

जा रहा जिधर बेख़बर आदमी


 

औरों से तो झूठ कहोगे ख़ुद को क्या समझाओगे


 

ज़िन्दगी की राह मुश्किल ही सही चलते रहेंगे


 

पर हैं लेकिन कटे हुए हैं


 

बड़ी मुश्किल है बोलो क्या बताएं


 

वक्त ये एक-सा नहीं होता


 

आंधियाँ भी चले और दिया भी जले


 

कौन ज़िंदा है कब तलक जाने


 

मुझे कुछ-कुछ सुनाई दे रहा है


 

जब भी मन विचलित होता है


 

बताना है बहुत मुश्किल कि किसमें क्या निकलता है


 

कुछ बुरे हैं कुछ भले किरदार हैं


 

ज़िन्दगी तूने नहीं अच्छा किया कम नहीं होतीं मेरी दुश्वारियां


 

दर्दे-दिल की बात न पूछो


 

मंजिल को पाने की ख़ातिर कोई राह बनानी होगी


 

यार नहीं जो काम न आए


 

कभी शोहरत नहीं होती कभी दौलत नहीं होती


 

जो है सच्ची वही ख़ुशी रखिए


 

सियासत में पड़ोगे तुम तो सब कुछ भूल जाओगे


 

कैसे कह दें प्यार नहीं है


 

संजीदगी से गाओ ये गीत दर्द का है


 

मेरे अश्कों पे लोग हँसते हैं


 

बात करते हैं हम मुहब्बत की


 

तुमसे कोई गिला नहीं है


 

भला है या बुरा है जानता हूँ


 

पास आओ तो बात बन जाए


 

चाहे जितना कष्ट उठा ले अच्छाई-अच्छाई है