रविवार, 29 दिसंबर 2013

एक प्यार भरा नग़मा- तुमसे कोई गिला नहीं है

आज एक प्यार और दर्द भरी रचना आप के सामने प्रस्तुत है | इस रचना का संगीत-संयोजन भी मैंने किया है |   इस रचना का असली आनंद सुन कर ही आयेगा, इसलिए आपसे अनुरोध है की आप मेरी मेहनत को सफल बनाएं और नीचे दिए गए लिंक पर इसे जरूर सुनें... 
 आप सभी को नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं...
आप से अनुरोध है कि आप मेरे Youtube के Channel पर भी Subscribe और Like करने का कष्ट करें ताकि आप मेरी ऐसी रचनाएं पुन: देख और सुन सकें | आशा ही नहीं वरन पूर्ण विश्वास है कि आप इस रचना को अवश्य पसंद करेंगे | रिकार्डिंग कर लेने के बाद उच्चारण संबंधी कुछ त्रुटियों की ओर भी  ध्यान गया पर दुबारा रिकार्डिंग करने के बजाय मैंने उसी तरह पोस्ट कर दिया | दरअसल अकेले गायन,वादन, रिकार्डिंग आदि कई काम एक साथ करते समय कई चीजें उस समय ध्यान में नहीं आ पाती, आगे से ध्यान रखूंगा |
              
केवल AUDIO सुनने  के लिए नीचे क्लिक करें-

तुमसे कोई गिला नहीं है।
प्यार हमेशा मिला नहीं है।

कांटे रहते उगे चमन में,
फूल हमेशा खिला नहीं है।

जिसको मंज़िल मिले हमेशा,
ऐसा हर काफ़िला नहीं है।

होता आया कई सदी से,,
ये पहला सिलसिला नहीं है।

बस अनचाही मिली हमें शय,
जो चाहा वो मिला नहीं है।

समझोगे तुम नहीं कभी भी,
नफ़रत दिल का सिला नहीं है।

जब तक मर्जी नहीं है रब की,

पत्ता तक इक हिला नहीं है |


नाजुक है दिल ‘अनघ’ हमारा,
ये पत्थर का किला नहीं है।
Copyright@PBChaturvedi
आप सभी को नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं..

रविवार, 8 दिसंबर 2013

ग़ज़ल-जा रहा है जिधर बेखबर आदमी

      मित्रों ! आज मैं एक अपनी शुरुआती दौर की ग़ज़ल अपनी आवाज़ में प्रस्तुत कर रहा हूँ | इसी रचना से मैंने अपने ब्लॉग की शुरुआत की थी | इस रचना का संगीत-संयोजन भी मैंने किया है | आप से अनुरोध है कि आप मेरे Youtube के Channel पर भी Subscribe और Like करने का कष्ट करें ताकि आप मेरी ऐसी रचनाएं पुन: देख और सुन सकें | आशा ही नहीं वरन पूर्ण विश्वास है कि आप इस रचना को अवश्य पसंद करेंगे |
इस रचना का असली आनंद Youtube पर सुन कर ही आयेगा, इसलिए आपसे अनुरोध है कि आप मेरी मेहनत को सफल बनाएं और वहां इसे जरूर सुनें...



जा रहा है जिधर बेखबर आदमी ।
वो नहीं मंजिलों की डगर आदमी ।


उसके मन में है हैवान बैठा हुआ,
आ रहा है हमें जो नज़र आदमी ।


नफरतों की हुकूमत बढ़ी इस कदर,
आदमी जल रहा देखकर आदमी ।


दोस्त पर भी भरोसा नहीं रह गया,
आ गया है ये किस मोड़ पर आदमी ।


क्या करेगा ये दौलत मरने के बाद,
मुझको इतना बता सोचकर आदमी ।


इस जहाँ में तू चाहे किसी से न डर ,
अपने दिल की अदालत से डर आदमी । 


 हर बुराई सुराखें है इस नाव की,
जिन्दगी नाव है नाव पर आदमी ।
 

आदमी है तो कुछ आदमीयत भी रख,
गैर का गम भी महसूस कर आदमी ।


तू समझदार है ना कहीं और जा,
ख़ुद से ही ख़ुद कभी बात कर आदमी ।
Copyright@PBChaturvedi

मंगलवार, 26 नवंबर 2013

अमर गायक मुकेश और मेरा संगीत

         दोस्तों ! मैं प्रारम्भ से ही मुकेश का बहुत बड़ा प्रशंसक रहा हूँ | बल्कि ये कहिये की मेरी संगीत में रूचि ही मुकेश जी की वजह से प्रारम्भ हुई | एक बार बचपन में उनका गीत रेडियो पर सुना-"जाने चले जाते हैं कहाँ" और अगले ही पल जब उद्घोषक ने ये कहा कि मुकेश जी की पुण्यतिथि पर यह गीत प्रसारित हो रहा है तो मेरे बदन में सिहरन-सी दौड़ गयी थी | तभी मैंने महसूस किया कि वह व्यक्ति जो अब ज़िंदा नहीं है, अपनी आवाज़ के रूप में कितना हमारे करीब है | सच पूछिए तो तभी से संगीत मुझे लुभाने लगा था | अपने पिताजी के डर से और माँ के सहयोग से मैंने चोरी-छिपे बनारस के बुलानाला में स्थित "गुप्ता-संगीतालय" से हारमोनियम और गिटार सीखा | फिर दो साल संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में प० जमुना प्रसाद मिश्र जी से तबला तथा प० जालपा प्रासाद मिश्र जी से गायन सीखा | एल-एल-बी० करने  के कारण गायन अधूरा रहा पर बाद में मैंने संगीत में अपना सीखना जारी रखा, हालांकि यह क्रमबद्ध नहीं हो पाया | संगीत से दूर रहना मुश्किल था, शायद इसीलिये बाद में संगीत की और दो उपाधियाँ मैंने ली |
       मुकेश जी के प्रभाव से संगीत से जुड़ा, इसलिए मैं उनके गीत खूब गाता और गुनगुनाता रहता था | उन दिनों मैं अक्सर मुंशी-घाट पर गर्मियों में नहाने जाया करता था, जहाँ देर तक मैं गंगा जी में नहाता और मुकेश के गीत गाता रहता था | उनके गीतों की और कई खूबसूरत यादें मेरे साथ जुड़ी हुई हैं जिन्हें मैं बाद में आपसे जरूर बताना चाहूँगा | 

शुक्रवार, 8 नवंबर 2013

दो छठ-गीत

      मित्रों ! छठ-पर्व के अवसर पर दो छठ-गीत प्रस्तुत कर रहा हूँ | पहला गीत लिखा है मेरी माँ श्रीमती शैलकुमारी ने और दोनों गीतों को स्वर दिया है मेरी धर्मपत्नी श्रीमती कंचनलता और मेरी पुत्री शाम्भवी ने ....
    


गुरुवार, 31 अक्तूबर 2013

जब भी जली है बहू जली है- दहेज़ पर एक रचना

मित्रो, आज आप के लिए दहेज़ पर एक रचना प्रस्तुत कर रहा हूँ | आप ने अक्सर देखा होगा जब भी ऐसी कोई खबर आती है तो उसमें सिर्फ बहू जलती है और वह भी तब जब कोई नहीं रहता, सभी जलने के बाद ही पंहुचते है | ख़ास तौर से सीधी-साधी बहुओं के साथ ये ज्यादा होता है | काश ! लोग सभी को इंसान समझते...

जब भी जली है बहू जली है सास कभी भी नहीं जली है |
जब भी जली सब दूर रहे हैं पास कभी भी नहीं जली है |

जितना भी मिलता जाता है उतना ही कम लगता है,
और मिले कुछ और मिले ये आस कभी भी नहीं जली है |

हम हिन्दू तो मरने पर ही लाश जलाया करते हैं,
वो जीते-जी जली है उसकी लाश कभी भी नहीं जली है |

कभी-कभी कुछ ऐब भी अक्सर चमत्कार दिखलाते हैं,
सीधी-साधी जल जाती बिंदास कभी भी नहीं जली है |

इस रचना को यू-ट्यूब जरुर पर सुनिए- 

 
Copyright@PBChaturvedi

बुधवार, 14 अगस्त 2013

भारत माँ हम तेरे बच्चे

स्वतंत्रता-दिवस पर देशभक्ति पर आधारित एक बालगीत प्रस्तुत कर रहा हूँ...

भारत माँ हम तेरे बच्चे,आज शपथ ये खायेंगे |
वक्त पड़ा तो तेरी खातिर, सर को भी कटायेंगे |

हम तेरी गोदी में रहते, हँसते, खाते, पीते हैं,
तेरी ममता की छाया में, हम सारे ही जीते हैं,
हमको आज़ादी दी तूने, जीवन में कुछ करने की,
हमको आज़ादी दी तूने, जैसे चाहे रहने की,
अपनी इस आज़ादी को हम, कैसे भला भुलायेंगे....
वक्त पड़ा तो तेरी खातिर, सर को भी कटायेंगे |

चाहे राम हो, कृष्ण हो चाहे, बुद्ध, महावीर, साईं हों,
नानक, तुलसी, सूरदास हों, मीरा, लक्ष्मीबाई हों,
राजगुरु, सुखदेव, भगतसिंह, गांधी या आज़ाद हों,
तेरी माटी में सब जन्मे, हम भी इनके बाद हों,
अपने कर्मों से हम इनमें, अपना नाम लिखायेंगे....
वक्त पड़ा तो तेरी खातिर, सर को भी कटायेंगे |

Copyright@PBChaturvedi

  सभी को स्वतंत्रता-दिवस पर  बहुत बहुत बधाई...

बुधवार, 17 जुलाई 2013

तुम क्या दोगे साथ, किसी का कोई साथ नहीं देता है

प्रस्तुत है एक रचना जो मुझे उम्मीद है आपको अवश्य पसंद आयेगी...

तुम क्या दोगे साथ किसी का कोई साथ नहीं देता है |
सच्ची है ये बात किसी का कोई साथ नहीं देता है |

मतलब की यें बातें हमको आपस में  जोड़े रखती हैं,
हरदम ये हालात किसी का कोई साथ नहीं देता है |

हमने तुमको अपना समझा गलती मेरी  माफ़ करो तुम ,
याद रहेगी बात किसी का कोई साथ नहीं देता है |

सच्चाई को देर से जाना अपनी ख़ता तो बस इतनी है,
जानी खा कर  मात किसी का कोई साथ नहीं देता है |

उम्मीदों  से आते हैं पर खाली हाथ चले जाते हैं,
कह उठते ज़ज्बात किसी का कोई साथ नहीं देता है |

Copyright@PBChaturvedi

मंगलवार, 25 जून 2013

मानवता अब तार-तार है

         मित्रों ! उत्तराखंड की घटना ने एक ऐसा घाव छोड़ा है जो शायद बरसों तक नहीं भर सकता | सबसे ज्यादा दुःख तो तब हुआ जब उस समय की कई घटनाओं के बारे में पता चला | कोई पानी बिना मर रहा था और कुछ लोग उस समय पानी का सौदा कर रहे थे और २०० रुपये अधिक दाम एक बोतल पानी का वसूल रहे थे | कुछ उस समय लाशों पर से गहने उतार रहे थे, और इसके लिए उन्होनें उन शवों की उंगलियाँ काटने से गुरेज नहीं किया | उनके सामने कई लोग मदद के लिए पुकार रहे थे मगर उन्होंने उन्हें अनसुना कर अपना काम जारी रखा | क्या हो गया है हमारे समाज को ? मानवता को ? कुछ पंक्तियाँ अपने–आप होंठ गुनगुनाते गए जिन्हें मैं आप को प्रेषित कर रहा हूँ |
       
मानवता अब तार-तार है, नैतिकता अब कहीं दफ़न है |
बीते पल ये कहते गुजरे, संभलो आगे और पतन है |

लुटे हुए को लूट रहे हैं, मरे हुए को काट रहे हैं;
कुछ ऐसे हैं आफ़त में भी; रुपये, गहने छांट रहे हैं;
मरते रहे कई पानी बिन, वे अपने धंधे में मगन हैं......

जो शासक हैं देख रहे हैं, उनको बस अपनी चिंता है;
मरती है तो मर जाए ये, ये जनता है वो नेता हैं;
आग लगाने खड़े हुए हैं जनता ओढ़े हुए कफ़न है...

भर जाते हैं घाव बदन के, मन के जख्म नहीं भरते;
आफ़त ही ये ऐसी आई, करते भी तो क्या करते;
क्या वे फिर से तीर्थ करेंगे, उजड़ा जिनका ये जीवन है...

Copyright@PBChaturvedi