रविवार, 26 जुलाई 2009

गीत/मुझे याद आ रहे हैं,वो ज़िन्दगी के दिन

आज मैं एक ऐसा गीत यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ जो कई मायनों में एकदम अलग है।इस गीत की खा़सियत यह है कि पूरे जीवन का वर्णन एक गीत में ही हो जाता है।है अनोखी बात!मुझे यकीन है कि आप को मेरा यह गीत जरूर पसन्द आयेगा क्योंकि यह आप के जीवन की कहानी भी तो बयां कर रहा है.........

मुझे याद आ रहे हैं ,वो ज़िन्दगी के दिन। 

कुछ मेरे ग़म के दिन,कुछ मेरी खुशी के दिन। 

 बचपन के खेल सारे, नानी की वो कहानी; 

ससुराल जो गई है, उस बहन की निशानी; 

झगडा़ करना,रोना और फिर हसीं के दिन...... 

कुछ और बडा़ होना,कुछ और सोचना; 

ख्वाबों में,खयालों में; आकाश चूमना; 

आज़ाद हर तरह से, कुछ बेबसी के दिन...... 

गप-शप वो दोस्तों के,और हम भी उसमें शामिल, 

वो शोर वो ठहाके,यारों की हसीं महफ़िल; 

वो किताब-कापियों के,वो दिल्लगी के दिन..... 

 कुछ उम्र बढी़ और, नौजवान हम हुए; 

कितनी ही हसीनों के,अरमान हम हुए; 

जब सोच में तब्दीली हुई उस घडी़ के दिन..... 

अब ख्वाब में आने लगे,जुल्फ़ों के वो साये; 

फिर जो भी हुआ उसको,अब कैसे हम बतायें; 

दीवाने हो गये हम,दीवानगी के दिन..... 

फिर जैसे बहार आई,घर मेरा खिल गया; 

बावस्ता उम्र भर के,इक दोस्त मिल गया; 

फिर फूल कुछ खिले और, नई रौशनी के दिन..... 

बच्चे बडे़ हुए अपनी उम्र बढ़ गई; 

चेहरे पे झुर्रियों की,सौगात चढ़ गई; 

हुए खत्म धीरे-धीरे,जीवन की लडी़ के दिन.....

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चाहे जितना कष्ट उठा ले

आज अपनी एक ऐसी रचना यहाँ दे रहा हूँ जो वाराणसी के एक मशहूर गायक श्री चन्द्रशेखर चक्रवर्ती जी ने गायी है और यह रचना राग दुर्गा में उनके द्वारा निबद्ध की गयी है। इस ग़ज़ल का दूसरा शेर तथाकथित डान (अपराधी) के सन्दर्भ में तथा चौथा शेर भारतीय तथा पाश्चात्य संगीत के लिये है।आप सभी प्रबुद्धजन हैं ये अर्थ बताने की जरुरत नही है पर इच्छा हुई तो लिख दिया,आशा है आप इसके लिये नाराज़ नही होंगे।

चाहे जितना कष्ट उठा ले, अच्छाई-अच्छाई है।
खुल जाता है भेद एक दिन, सच्चाई-सच्चाई है।

होती है महसूस जरूरत, जीवन में इक साथी की,
तनहा जीवन कट नहीं सकता, तनहाई-तनहाई है।

चर्चे खूब हुए हैं तेरे, हर घर में हर महफ़िल में,
चाहे जितनी शोहरत पा ले, रुसवाई-रुसवाई है।

पूरे बदन को झटका देना, हाथों को ऊपर करके,
सच पूछो तो तेरी उम्र की, अँगडा़ई-अँगडा़ई है।

पश्चिम की पुरजोर हवा से, पैर थिरकने लगते हैं,
झूम उठता है सिर मस्ती में, पुरवाई-पुरवाई है।

भाषा अलग, अलग पहनावा, अलग-अलग हम रहतें हैं,
लेकिन हम सब हिन्दुस्तानी, भाई-भाई-भाई हैं।

रहना एक ‘अनघ’ तुम हरदम, जैसे एक-सी रहती है;
सुख-दुख दोनों में बजती है, शहनाई-शहनाई है।

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रविवार, 12 जुलाई 2009

दिल का कहना जरूर माना करो

दिल का कहना जरूर माना करो।
ख़ुद को ख़ुद से ख़फ़ा किया ना करो।

चीज कोई अगर तुम्हें चाहिए ,
ख़ुद को उसके लिए दीवाना करो।

जब भला तुम किसी का कर न सको ,
तुम किसी का कभी बुरा ना करो।

आजमाते रहे इसे क्यों भला,
बन्द अब दिल को आजमाना करो।

झूठी तारीफ़ सामने जो करे,
उसको अपना कभी न जाना करो।

तुममें भी है खुदा यकीं ये करो,
तुम ‘अनघ’ यूं  खु़दा-खु़दा ना करो।

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गीत/भूलने वाले मुझे याद कर

भूलने वाले मुझे याद कर,भूलने वाले मुझे याद आ।
आ खयालों में मेरे तू आ,मुझको अपने खयालों में ला।

ये तनहाई है मेरी दुश्मन, ये तो तुमको भी सताती होगी;
मैं इधर जब तड़पता हूँ इतना,ये तुम्हें भी तड़पाती होगी;
पास आ तू मेरे पास आ,और तनहाइयों को भगा........

अब है तुमको मेरी जरूरत, और तू है जरूरत मेरी;
मैं हूँ तेरे हाथ की लकीरें,और तू ही है किस्मत मेरी;
हाथ में हाथ आ तू रख दे और दोनों की किस्मत जगा......

मन से मन तो मिल ही चुके हैं,तन से तन भी आकर मिला ले;
ये मुहब्बत की दुनिया हो रौशन,ऐसी शम्मा तू आकर जला ले;

ये शरम, ये हया छोड़कर;मुझको अपने गले तू लगा..........

आप दिल की जुबां समझते हैं

आप दिल की जुबां समझते हैं।
फिर भी अनजान बन के रहते हैं।

खूब मालूम आप को ये है,
हम यहाँ किससे प्यार करते हैं।

है ये दस्तूर ले के देने का,
दिल मेरा ले के अब मुकरते हैं।

मुझको मालूम है अकेले में,
आप मेरे लिए सुबकते हैं।

हर हसीं को गुमा ये होता है,
लोग सारे ये मुझपे मरते हैं।

उनको देखें नहीं भला क्यों जब,
इतना मेरे लिये संवरते हैं।

दूसरा जब भी आप को देखे,
जख्म दिल मे नयें उभरते हैं।

हुश्न में कुछ न कुछ तो है यारों,
इसपे इक बार सब फिसलते हैं।

छुप के देखा है मुझे तुमने भी,
जैसे हम रोज़-रोज़ करते हैं।

कीजिए खुल के कीजिए इकरार,
कितने इसके लिए तरसते हैं।

मैनें देखा है पूरी दुनिया में,
लोग छुप-छुप के प्यार करते हैं।

वो जवां जबसे, है नज़र सबकी,
क्यूं , कहाँ, कैसे, कब गुजरते हैं।

हुश्न वालों को शर्म आती नहीं,
इश्क वाले ‘अनघ’ झिझकते हैं।
 

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रविवार, 5 जुलाई 2009

बडी़ मुश्किल है बोलो क्या बताएं

बड़ी मुश्किल है बोलो क्या बताएं।
न पूछो कैसे हम जीवन बिताएं।

अदाकारी हमें आती नही है,
ग़मों में कैसे अब हम मुस्कुराएं।

अँधेरा ऐसा है दिखता नही कुछ,
चिरागों को जलाएं या बुझाएं।

फ़रेबों, जालसाजी का हुनर ये,
भला खुद को ही हम कैसे सिखाएं।

सियासत अब यही तो रह गई है,
विरोधी को चलो नीचा दिखाएं।

अगर सच बोल दें तो सब खफ़ा हों,
बनें झूठा तो अपना दिल दुखाएं।

ये माना मुश्किलों की अब घडी़ है,
‘अनघ’ उम्मीद हम फिर भी लगाएं।

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दूर रहकर भी मेरे पास हो तुम

दूर रहकर भी मेरे पास हो तुम।
जिसको ढूंढू वही तलाश हो तुम।

प्यार जो पहली-पहली बार हुआ,
मेरे उस प्यार का अह्सास हो तुम।

इस जहाँ में बहुत से चेहरे हैं,
इन सभी में बहुत ही खास हो तुम।

तेरा-मेरा मिलन तो फिर होगा,
ऐ मेरे यार क्यों उदास हो तुम।

तुमसे ही मेरी हर तमन्ना है,
मेरी हसरत हो मेरी आस हो तुम।

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