सोमवार, 27 अप्रैल 2020

दुखवा हमार मईया टारीं-कोरोना पर एक भोजपुरी देवी गीत

इस समय पूरा विश्व कोरोना की चपेट में त्राहि-त्राहि कर रहा है, इसी समय नवरात्रि में इस रचना का प्रादुर्भाव हुआ जिसे संगीतबद्ध भी किया है | मेरे लिखे इस भजन को आप मेरी आवाजऔर मेरी बेटी शाम्भवी की आवाज में सुन सकते हैं | आशा है आप सभी को यह गीत पसंद आयेगा...

दुखवा हमार मइया टारीं, तोहरे शरण हम बानी |


सारा संसार में आइल बा बिपतिया,

रोग से मरत बाड़न लोग दिन-रतिया,

कोरोना फइलल महामारी, रउरे शरण हम बानी |


काम नाही काज नाही क़ैद सब घरवा,

निकले में डर लागे अपनो दुअरवा,

बिपदा पड़ल बाटे भारी तोहरे शरण हम बानी |


नवरात आइल बा आस बा इ जागल,

जे भी पुकारी ओकर दुख दउड़ी भागल,

संकट से मइया अब उबारीं रउरे शरण हम बानी |

Copyright@PBChaturvedi




सोमवार, 13 अप्रैल 2020

ग़ज़ल : कितने झंझावात सहे हैं


कोरोना काल में हुई परिस्थितियों पर यह रचना प्रस्तुत है.....

कितने झंझावात सहे हैं, हम ये दुःख भी सह लेंगे |
दर-दर भटका करते थे हम, अपने घर में रह लेंगे|

अरसे बाद मिली है फुरसत, हर अपने से मिलने की,
कुछ सुन लेंगे उनकी हम कुछ अपने दिल की कह लेंगे |

यन्त्रों का युग है जीवन भी हम यन्त्रों-सा जीते हैं,
मानव-जीवन की सरिता ये, इसमें कुछ दिन बह लेंगे |

चिंता इसकी, उसकी, सबकी, अक्सर करते रहते थे,
कब सोचा था बिन चिंता के, हम सब कुछ दिन रह लेंगे |

नदियों की कल-कल मीठी है, आज हवा भी महकी-सी,
मन की सन्दूकों में ऐसी, यादें कर रख तह लेंगे |

ना खोना है ना पाना कुछ, ऐसे पल कब मिलते हैं,
औरों को तो देख चुके हैं, खुद को कुछ दिन गह लेंगे |

Copyright@PBChaturvedi प्रसन्न वदन चतुर्वेदी

रविवार, 12 अप्रैल 2020

पंचकवि-चौरासी घाट : प्रसन्नवदन चतुर्वेदी : गोला घाट

पंचकवि-चौरासी घाट : प्रसन्नवदन चतुर्वेदी : गोला घाट


पंचकवि-चौरासी घाट : प्रसन्नवदन चतुर्वेदी : बद्रीनारायण-त्रिलोचन घाट

पंचकवि-चौरासी घाट : प्रसन्नवदन चतुर्वेदी : बद्रीनारायण-त्रिलोचन घाट


इस गए साल ने हमसे ऐसा किया : पंचकवि-चौरासी घाट : हनुमानगढ़ी घाट

दोस्तों, अपनी यह रचना जो पंचकवि-चौरासी घाट कार्यक्रम में हनुमानगढ़ी घाट पर प्रस्तुत किया था, यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ.....

इस गए साल ने हमसे ऐसा किया |
कुछ बुरा कर गया कुछ तो अच्छा किया |

हमने सोचा बहुत पा सके सब नहीं,
मन की इच्छा में यूं रह गई कुछ कमी |
वक्त की चाल पे क्यों भरोसा किया........

बेटी-बेटे गए अगले दर्जे में अब,
कुछ इजाफा हुआ फिर से कर्जे में अब,
काम-धंधे ने यूं बेसहारा किया..........

कुछ नए लोग जीवन में हमसे मिले,
बढ़ गए कुछ पुरानों के शिकवे गिले,
बात बढ़ने से उनसे किनारा किया......

गम ख़ुशी के कई जाम पीते रहे,
इक नई आस में हम तो जीते रहे,
कुछ भला आगे होगा ये सोचा किया....

कुछ पुराने थे अपने, बिछड़ भी गए,
हम कई बार तनहा से पड़ भी गए,
फिर संभलकर न्य इक इरादा किया......

साल जो आएगा वो ख़ुशी लाएगा,
दूर गम होंगे लब पर हंसी लाएगा,
वक्त ने हमसे ऐसा इशारा किया......


पंचकवि-चौरासी घाट : प्रसन्न वदन चतुर्वेदी : ब्रह्मा घाट

पंचकवि-चौरासी घाट : प्रसन्न वदन चतुर्वेदी : ब्रह्मा घाट

न्यायालय में न्याय नहीं है |
कुछ भी तो पर्याय नहीं है |

मत बाँधो इसको खूंटे से,
बेटी है ये गाय नहीं है |

मोमबत्तियां जला रहे हैं,
न्याय भरा समुदाय नहीं है |

खर्चे पर खर्चे करते हैं,
लेकिन कोई आय नहीं है |

अपराधी फल-फूल रहे हैं,
क्या अब लगती हाय नहीं है |

जब अखबार नहीं; लगता है,
आज सुबह की चाय नहीं है |

तेरी-मेरे, इसकी-उसकी,
मिलती क्योकर राय नहीं है |

जयचन्दों से देश भरा है,
कोई पन्ना-धाय नहीं है |