सोमवार, 8 जून 2009

तेरी नाराज़गी का क्या कहना

तेरी नाराज़गी का क्या कहना ।
अपनी दीवानगी का क्या कहना ।

कट रही है तुझे मनाने में,
मेरी इस जिंदगी का क्या कहना ।

तेरी गलियों की खाक छान रहा,
मेरी आवारगी का क्या कहना ।

तेरी मुस्कान से भरी महफ़िल,
मेरी वीरानगी का क्या कहना ।

जान पर मेरे बन गई लेकिन,
तेरी इस दिल्लगी का क्या कहना ।

तूने ठुकरा दिया मुहब्बत को,,
तेरी इस सादगी का क्या कहना ।

कोशिशें सब ‘अनघ’ हुयी जाया,
ऐसी बेचारगी का क्या कहना ।

Copyright@PBChaturvedi

15 टिप्‍पणियां:

  1. kyaa baat hai panditjee ! ahaa !! hum kaayal ho gaye saaheb. bahut khoob. jald hee Jabalpur pahunch kar aapase miltaahoon. abhee poona main hoon, vakeel saheb. hamaare dost hue jee aap ab. door rahane kee kosshish naa keejiyeegaa ab humse. haa haa. badhaai is sundar rachna ke liye, bahut bahut.

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  2. apki is rachna ka kya kahna
    padega hame chup rahna
    nahi kah payenge kuch bhi
    apke andaz ka kya kahna

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  3. लाजवाब लिखा है आपने, "तेरी गलियों की खाक छान रहा,
    मेरी आवारगी का क्या कहना |।और जब इस स्थिति से गुजरते हैं, तो लगता है मेरे लिए ही लिखा है |

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  4. क्या खूब लिखा आपने,
    आपके लेखनी का क्या कहना

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  5. Vah kya khub likha hai aapne , really great, Nice poem...
    Regards..
    DevPalmistry

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  6. sabhi gazhlen padhi janab,, aap bahut lajwab likhte hain. badhai.

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  7. आप लिख ही नहीं रहें हैं, सशक्त लिख रहे हैं. आपकी हर पोस्ट नए जज्बे के साथ पाठकों का स्वागत कर रही है...यही क्रम बनायें रखें...बधाई !!
    ___________________________________
    "शब्द-शिखर" पर देखें- "सावन के बहाने कजरी के बोल"...और आपकी अमूल्य प्रतिक्रियाएं !!

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  8. तेरी मुस्कान से भरी महफ़िल,
    मेरी वीरानगी का क्या कहना ।
    lazabaab

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  9. kyaa likhaa hai ji aapne..
    naaraazgi mein bhi..
    teri muskaan se bhari mahfil,,,
    meri viraangi kaa kyaa kahnaa

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  10. बहोत पसंद आयी ये रचना. किसीकी बेरुखी और लिखने वाले की बेताबी का अहेसास होता है...

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