शुक्रवार, 30 अक्तूबर 2009

यार नहीं जो काम न आए

बहुत दिनों बाद आज कोई रचना प्रस्तुत कर रहा हूँ..दरअसल मैं लगभग १ माह नेट से दूर रहा...आशा है आप को अवश्य पसंद आएगी ...

यार नहीं जो काम न आए।
प्यार वही जो साथ निभाए।

आता वक्त बुरा तो अक्सर,
जिससे आशा वो ठुकराए।

दिन में ही कुछ कोशिश कर लो,
जिससे काली रात न आए।

वक्त अगर बीतेगा ये भी,
दोबारा फिर हाथ न आए।

भाई-भाई अब लड़ते हैं,
आपस में ये बात न आए।

तू-तू,मैं-मैं करती दुनिया,
ऐसे तो हालात न आए।

सच पूछो तो वो ही जवां है,
जो मिट्टी का कर्ज़ चुकाए।
Copyright@PBChaturvedi

26 टिप्‍पणियां:

  1. शब्द शब्द दिल पर छा जाए,
    कितना सुंदर गीत सुनाए...

    चतुर्वेदी जी हर पंक्ति लाज़वाब..बढ़िया लगा पढ़ कर ..धन्यवाद

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  2. बहुत ही सुन्दर रचना
    दिन में ही कुछ कोशिश कर लो,
    जिससे काली रात न आए।
    बहुत गहरी बात और भाव

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  3. यार नहीं जो काम न आए।
    प्यार वही जो साथ निभाए।

    आता वक्त बुरा तो अक्सर,
    जिससे आशा वो ठुकराए।

    bahut sunder lines


    aapke dwara likhe gaye ek ek shabd jeevant ho uthe hain....

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  4. सच पूछो तो वो ही जवां है,
    जो मिट्टी का कर्ज़ चुकाए।

    वाह, क्या बात कही है.
    अच्छी रचना.

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  5. आता वक्त बुरा तो अक्सर,
    जिससे आशा वो ठुकराए।

    दिन में ही कुछ कोशिश कर लो,
    जिससे काली रात न आए।

    बहुत अच्छी ग़ज़ल प्रसन्न जी...वाह...लिखते रहें...
    नीरज

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  6. आता वक्त बुरा तो अक्सर,
    जिससे आशा वो ठुकराए।

    गहरी बात !

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  7. सच पूछो तो वही जवा हैं
    जो माटी का कर्ज चुकाए।
    वक्त लिखता है भाग्य सबका
    किसको किससे कब मिलाए।
    रिश्ता बने जीवन में ऐसा,
    लोगों के लिए मिसाल बन जाए।।
    आप तो सब जानते हो महोदय
    आपको अब हम क्या समझांए।।

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  8. दिन में ही कुछ कोशिश कर लो,
    जिससे काली रात न आए।
    लेकिन लोग नहीं कर पाते कोशिशे। बस काली रात कैसे आए इसी का प्रयत्‍न है चारों ओर। अच्‍छी रचना के लिए बधाई।

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  9. namaskar prasannji!mere blog per tashreef lane ke liye shukriya.achhi gazal kahte hain aap.badhai.

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  10. बहुत ही सुंदर, गहरे भाव और अभिव्यक्ति के साथ लिखी हुई आपकी ये शानदार रचना काबिले तारीफ है!

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  11. देर आए दुरूस्त आए।
    सच पूछो तो वो ही जवां है
    जो मिट्टी का कर्ज चुकाए
    --बहुत बढ़िया शेर।

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  12. पंक्तियाँ सार्थक है
    धन्यवाद आपका.

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  13. वक्त अगर बीतेगा ये भी,
    दोबारा फिर हाथ न आए।
    बहुत सही कहा !
    आप की यह ग़ज़ल भी पसदं आई

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  14. छोटी बहर में एक खूबसूरत ग़ज़ल है. सरल शब्दों में बहुत अच्छे भावों को उतारा है.
    बधाई.
    महावीर शर्मा
    http://mahavirsharma.blogspot.com
    मंथन
    http://mahavir.wordpress.com

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  15. "din mei hi kuchh koshish kr lo
    jis se kaali raat na aaye.."

    waah !!
    bahut hi achhaa sher
    khoobsurat paigaam detee hua
    sari gzl padh kr aanand milaa

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  16. दिनों बाद दिखे हैं प्रसन्न साब!

    खूबसूरत ग़ज़ल...छोटी बहर पे कसी हुई!

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  17. यार नहीं जो काम न आये
    प्यार वही जो साथ निभाए

    वाह छोटी बहर में लाजवाब ग़ज़ल .....!!

    मैं सोच ही रही थी की आजकल नज़र नहीं आ रहे और आप आ गए .....!!

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  18. चतुर्वेदीजी,
    छोटी बहार की ये ग़ज़ल ज़रूरी हिदायतों के साथ एक सच्चा बयान भी है--
    'दिन में ही कुछ कोशिश कर लो,
    जिससे काली रात न आये !'
    सुन्दर और प्रेरक ग़ज़ल ! बधाई !!
    'मेरा ठिकाना हो नहीं सकता...' पर आपकी प्रतिक्रिया से अवगत हुआ ! आभारी हूँ !!
    सप्रीत--आ.

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  19. कबीर और दुष्यंत साथ साथ. क्या बात है.

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  20. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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