सोमवार, 20 मई 2013

बचा लो बेटियाँ अपनी/कविता

मित्रों ! दिल्ली की वारदातों और देश भर में ऐसी ही घटनाओं ने मुझे किसी नई रचना को जन्म देने से रोक रखा था क्योंकि मैं अपने  हृदय की गहराइयों से स्वयं को बहुत ही दुखी महसूस कर रहा था। संयोग से मेरी बेटी को एक संस्था द्वारा आयोजित "बेटी बचाओ नशा छुड़ाओ" विषय पर कविता प्रतियोगिता में भाग लेने के लिये एक कविता की आवश्यकता पड़ी तो मेरे कलम खुद-ब-खुद लिखते गये और यह कविता बन गयी। बेटी ने भी प्रथम पुरस्कार पाकर इस कविता को सार्थक किया। आशा है आप को भी ये अच्छी लगेगी.....

सृष्टि ही मार डालोगे, तो होगी सर्जना फिर क्या ?
बचा लो बेटियाँ अपनी, पड़ेगा तड़पना फिर क्या ?

डरी-सहमी सी रहती है, नहीं ये कुछ भी कहती है,
मगर बेटों से ज्यादा पूरे अपने फर्ज़ करती है,

बढ़ाती वंश जो दुनियां में उसको मारना फिर क्या ?
बचा लो बेटियाँ अपनी, पड़ेगा तड़पना फिर क्या ?

अगर बेटी नहीं होगी, बहू तुम कैसे लाओगे,
बहन, माँ, दादी, नानी के, ये रिश्ते कैसे पाओगे,
बताओ माँ के ममता की करोगे कल्पना फिर क्या ?

बचा लो बेटियाँ अपनी, पड़ेगा तड़पना फिर क्या ?

जब तलक मायके में है, वहाँ की आन होती है,
और ससुराल जब जाती, वहाँ की शान होती है,
बेटियाँ दो कुलों की लाज रखती सोचना फिर क्या ?

बचा लो बेटियाँ अपनी, पड़ेगा तड़पना फिर क्या ?

कोई प्रतियोगिता हो टाप करती है तो बेटी ही,
किसी भी फर्ज़ से इन्साफ़ करती है तो बेटी ही,
ये है माँ- बाप के आँखों की पुतली फोड़ना फिर क्या ?

बचा लो बेटियाँ अपनी, पड़ेगा तड़पना फिर क्या ?

कई बेटे तो अपने फर्ज़ से ही ऊब जाते हैं,
कई बेटे हैं ऐसे जो नशे में डूब जाते हैं,
 
नशे से पुत्र बच जाए भ्रुणों से पुत्रियाँ फिर क्या ?
बचा लो बेटियाँ अपनी, पड़ेगा तड़पना फिर क्या ?

Copyright@PBChaturvedi

12 टिप्‍पणियां:

  1. मेरे दिल को छु गयी ..बेहतरीन रचना ..इस रचना को सचमुच प्राइज मिलना ही चाहिए ..आपको ढेर सारे बधाई ..सादर

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  2. बेटी जीवन की सार्थक ख़ुशी है
    भावपूर्ण रचना
    बधाई

    आग्रह है मेरे ब्लॉग का अनुसरण करें
    ओ मेरी सुबह--

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  3. बहुत अच्छी प्रस्तुति....बहुत बहुत बधाई...

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  4. सार्थक प्रस्तुति
    बहुत अच्छी

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  5. kshama24 मई 2013 6:54 pm

    Bada achha laga aapke blogpe aana!
    प्रत्‍युत्तर देंहटाएं
    mahendra mishra24 मई 2013 8:09 pm

    बहुत सुन्दर प्रस्तुति ...
    प्रत्‍युत्तर देंहटाएं
    धीरेन्द्र सिंह भदौरिया24 मई 2013 9:15 pm

    बहुत प्यारी आवाज के साथ सुन्दर रचना,,,बेटी साम्भ्वी को बहुत२ बधाई,शुभकामनाए,,

    Recent post: जनता सबक सिखायेगी...

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  6. क़ौम से कटा हुआ ये जी रहा है कौन
    ऑंख में ऑंसू लिये ये जी रहा है कौन ?
    आज बहू- बेटियॉं रोतीं हैं यहॉं क्यॉ
    प्रश्न उठ रहा है रुलाता है मगर कौन ?
    बेटी को बचा ले 'शकुन'सिसक रही है वो
    दुनियॉं में आने से उसे है रोक रहा कौन ?

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  7. नमस्कार !
    बहुत अच्छी प्रस्तुति....बहुत बहुत बधाई
    जरूरी कार्यो के ब्लॉगजगत से दूर था
    आप तक बहुत दिनों के बाद आ सका हूँ

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  8. बहुत अच्छा लिखा है और आज का सत्य भी
    शुभकामनायें

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  9. इस कविता को स्वर देने वाली आपकी साकार रचना ,शाम्भवी ने उसमें प्राण फूँक कर जीवंत कर दिया - गुणी पुत्री और गर्वित पिता को हार्दिक बधाई !

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  10. बहुत सुन्दर अच्छा लगा आपके ब्लॉग पर आकर।

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