गुरुवार, 31 अक्तूबर 2013

जब भी जली है बहू जली है- दहेज़ पर एक रचना

मित्रो, आज आप के लिए दहेज़ पर एक रचना प्रस्तुत कर रहा हूँ | आप ने अक्सर देखा होगा जब भी ऐसी कोई खबर आती है तो उसमें सिर्फ बहू जलती है और वह भी तब जब कोई नहीं रहता, सभी जलने के बाद ही पंहुचते है | ख़ास तौर से सीधी-साधी बहुओं के साथ ये ज्यादा होता है | काश ! लोग सभी को इंसान समझते...

जब भी जली है बहू जली है सास कभी भी नहीं जली है |
जब भी जली सब दूर रहे हैं पास कभी भी नहीं जली है |

जितना भी मिलता जाता है उतना ही कम लगता है,
और मिले कुछ और मिले ये आस कभी भी नहीं जली है |

हम हिन्दू तो मरने पर ही लाश जलाया करते हैं,
वो जीते-जी जली है उसकी लाश कभी भी नहीं जली है |

कभी-कभी कुछ ऐब भी अक्सर चमत्कार दिखलाते हैं,
सीधी-साधी जल जाती बिंदास कभी भी नहीं जली है |

इस रचना को यू-ट्यूब जरुर पर सुनिए- 

 
Copyright@PBChaturvedi

21 टिप्‍पणियां:

  1. एक बुराई पर प्रहार करती सुन्दर रचना । ।

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  2. बिलकुल सही कहा। दहेज़ के लोभियों को कड़ी से कड़ी सजा मिलने के साथ ही इनका सामूहिक बहिष्कार होना चाहिए।

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  3. बहुत ही सुंदर प्रस्तुति ,,,
    नेट स्लो चलने के कारण नहीं देख पा रहा हूँ ,,

    RECENT POST -: तुलसी बिन सून लगे अंगना

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  4. उम्दा रचना.. सीधा और बेबाक ..दीपोत्सव की मंगलकामना मेरे भी ब्लॉग पर आये

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  5. बहुत बढियां सार्थक रचना .. दिवाली की हार्दिक शुभकामनाएं ..

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  6. जब भी जली है बहु जली है ,सास कभी भी नहीं जली है ,

    जितना भी मिलता जाता है ,उतना ही कम लगता है ,

    और मिले कुछ और मिले ,आस कभी भी नहीं जली है।

    हम हिन्दू तो मरने पर ही लाश जलाया अक्र्ते हैं ,

    वो जीते जी जली है ,उसकी लाश कभी भी नहीं जली है।

    बहुत सशक्त मार्मिक अभिव्यक्ति समाज की इस विडंबना को सुन्दर कैसे कहें फेस बुक की तरह

    लाइक कैसे करें ?

    बहु है असली सास है नकली ,दिवाली पे पोल खुली है -

    ,सीधी साधी जल जाती है बिंदास कभी भी नहीं जली है ,

    यू ट्यूब पर भी सुना

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  7. बहुत सशक्त रचना.

    दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  8. भावपूर्ण और सार्थक रचना .
    अच्छी प्रस्तुति .

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  9. सटीक ... एक समाज की बुराई पे बेबाकी से लिखा है ... लाजवाब शेर हैं सभी ...
    दीपावली के पावन पर्व की बधाई ओर शुभकामनायें ...

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  10. मस्त-
    मार्मिक -
    चेताती-
    आभार-

    जलने से बच जाय तो, बन सकती है सास |
    सास इसी एहसास से, देती साँस तराश |
    देती साँस तराश, जलजला घर में आये |
    और होय परिहास, जगत में नाक कटाये |
    रविकर घर से निकल, चला है कालिख मलने |
    लेकिन घर में स्वयं, बहु को देता जलने-

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  11. समाज की सच्चाई को सामने लाती रचना
    बहुत बहुत बधाई !!

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  12. एक कटु सच को दर्शाती प्रभावी रचना।

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