बुधवार, 18 नवंबर 2015

आप कहते हैं हमसे ग़ज़ल छेड़िए


मैंने यह रचना ऐसे समय के लिए लिखा है जब गायक से किसी ग़ज़ल की फ़ारमाइश हो रही है किन्तु वह दुखी है......उसके मन की व्यथा इस रचना में आप यहाँ पढ़िए और YOUTUBE पर सुनिए.....


आप कहते हैं हमसे ग़ज़ल छेड़िए, कब तलक हम ग़ज़ल यूं सुनाते रहें |
अपने खोए हुए यार की याद से, कब तलक गम की शम्मा जलाते रहें |

ज़िंदगी ने हसीं हमको धोखा दिया,
पहले हमको मुहब्बत का मौका दिया,
फिर जुदाई की तनहाइयां आ गयीं, जिनको हम महफ़िलों में छुपाते रहे......

मेरे दिल में है गम चेहरे पे हँसी,
आप समझेंगे क्या मेरी ये बेबसी,
आप समझेंगे इसको भी मेरी अदा, गाते-गाते जो हम मुस्कुराते रहे.....

हर्फ़ अश्कों के हैं सुर मेरी आह के,
आप कैसे सुनेंगे इन्हें चाह से,
रो पड़ा गाते-गाते आप क्या जाने क्यों, आप तो तालियाँ बस बजाते रहे.....
 
 
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