बढ़े हम फासलों तक जा रहे हैं |
हंसी से आंसुओं तक जा रहे हैं |
सभी हैं दोस्त, ये जो काफिला है,
हमारे दुश्मनों तक जा रहे हैं |
बहन, भाई के
रिश्ते बचपनों तक,
बड़े, न्यायालयों
तक जा रहे हैं |
मुहब्बत दिल का रिश्ता अब नहीं है,
सभी अब बिस्तरों तक जा रहे हैं |
मतलबी लोग सारे हो गए हैं,
वो केवल दावतों तक जा रहे हैं |
गिरावट आ रही है आदमी में,
भले ग्रह-उपग्रहों
तक जा रहे हैं |
न पाठक आ रहे हैं पुस्तकों तक,
न लेखक अब दिलों तक जा रहे हैं |
पुरानी बात है बाजार जाना,
वो खुद चलकर घरों तक जा रहे हैं |
नहीं अंतर है इनमें, मसखरों में,
ये कवि अब चुटकुलों तक जा रहे हैं |
खबर अच्छी कहीं कोई न मिलती,
नगर बस हादसों तक जा रहे हैं |
न गाँवों में दिखे पहले सी रौनक,
शहर की आदतों तक जा रहे हैं |
ज़रा सा शेर कह सोचें ‘अनघ’ वो,
कि हम भी गालिबों तक जा रहे हैं |
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सुन्दर
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