गुरुवार, 11 नवंबर 2021

बढ़े हम फासलों तक जा रहे हैं

बढ़े हम फासलों तक जा रहे हैं |
हंसी से आंसुओं तक जा रहे हैं |
 
सभी हैं दोस्त, ये जो काफिला है,
हमारे दुश्मनों तक जा रहे हैं |
 
बहन, भाई के रिश्ते बचपनों तक,
बड़े, न्यायालयों तक जा रहे हैं |
 
मुहब्बत दिल का रिश्ता अब नहीं  है,
सभी अब बिस्तरों तक जा रहे हैं |
 
मतलबी लोग सारे हो गए हैं,
वो केवल दावतों तक जा रहे हैं |
 
गिरावट आ रही है आदमी में,
भले ग्रह-उपग्रहों तक जा रहे हैं |
 
न पाठक आ रहे हैं पुस्तकों तक,
न लेखक अब दिलों तक जा रहे हैं |
 
पुरानी बात है बाजार जाना,
वो खुद चलकर घरों तक जा रहे हैं |
 
नहीं अंतर है इनमें, मसखरों में,
ये कवि अब चुटकुलों तक जा रहे हैं |
 
खबर अच्छी कहीं कोई न मिलती,
नगर बस हादसों तक जा रहे हैं |
 
न गाँवों में दिखे पहले सी रौनक,
शहर की आदतों तक जा रहे हैं |
 
ज़रा सा शेर कह सोचें अनघवो,
कि हम भी गालिबों तक जा रहे हैं |
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