सोमवार, 5 मार्च 2012

ग़ज़ल/सारे बन्धन वो तोड़कर निकला

सभी ब्लागर साथियों को नमस्कार ! बहुत दिन हुए मैनें अपने ब्लाग पर लगातार कुछ नहीं लिखा। लीजिए प्रस्तुत है एक ग़ज़ल ( बहर  :-  फाइलातुन मफाइलुन फेलुन )  ....

सारे बन्धन वो तोड़कर निकला।
दर्द से मेरे बेखबर निकला ।

 
मैं लुटा तो मगर ये रंज मुझे,
लूटने वाला हमसफर निकला।

 
वक्त ने भी दिया दगा मुझको,
प्यार का वक्त मुक्तसर निकला ।

 
दूसरा कोई रास्ता ही नहीं,
अश्क ये आँख की डगर निकला।
 
ये शिकायत तेरे 'अनघ' से है,
बेवफाई की राह पर निकला।
Copyright@PBChaturvedi

21 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत खूब ... लाजवाब गज़ल है प्रसन्न वदनजी ... नए भाव लिए ...

    आपको और समस्त परिवार को होली की शुभकामनायें ...

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  2. अश्क आंख की डगर निकला......बहुत उम्दा प्रयास !

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  3. .

    ख़ूबसूरत ग़ज़ल है
    प्रसन्नवदन चतुर्वेदी जी आपकी हर रचना की तरह ही …
    बहुत ख़ूब !


    … और हां,
    तुम मुझको याद रखना
    मेरी बात याद रखना

    सुनवाने के लिए विशेष आभार और बधाई !
    लगा , जैसे ख़ूबसूरत गायक जगमोहन का गाया कोई अब तक न सुना गीत सुन रहा हूं …
    :)

    संगीत कैसे मिक्स किया…

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  4. राजेन्द्र भाई,ये कोई विशेष रिकार्डिंग नहीं है बल्कि इसमें मैनें खुद ही सिन्थेसाइजर बजाकर गाया है।

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  5. ग़ज़ल अच्छी लगी। होली की बधाई, शुभकामनाएं!

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  6. ग़ज़ल अच्छी है।

    शुभकामना है कि आपकी गायकी में और निखार आए।
    होली की बहुत-बहुत बधाई।

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  7. मैं लुटा तो मगर ये रंज मुझे,
    लूटने वाला हमसफर निकला।
    खूबसूरत शेर !
    आपको सपरिवार होली की हार्दिक शुभकामनाएँ !

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  8. बढ़िया लगा आपका यह प्रयास...नियमित रखें इसे....

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  9. दूसरा कोई रास्ता ही नहीं,
    अश्क ये आँख की डगर निकला।bahut badhiyaa.

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