मंगलवार, 13 मार्च 2012

औरों से तो झूठ कहोगे

 प्रस्तुत है एक आत्मविश्लेषणात्मक ग़ज़ल ( बहर  :-फेलुन फेलुन फेलुन फेलुन फेलुन फेलुन फेलुन फा )  :-

औरों से तो झूठ कहोगे, ख़ुद को क्या समझाओगे।
तनहाई में जब तुम ख़ुद से, अपनी बात चलाओगे।

झूठ, फरेब, दगाबाजी, नफरत, बेइमानी, मक्कारी,
करते हो, छलते हो सबको; पर कबतक छल पाओगे।

कुछ लम्हें ऐसे आते हैं, इन्सां जब पछताता है,
ऐसे लम्हें जब आयेंगे, तुम भी बहुत पछताओगे।

जीने की खातिर दुनिया में, तुम ये करते हो माना,
लेकिन औरों को दुख देकर, क्या सुख से जी पाओगे।

चोट किसी को देते हो खुश होते हो लेकिन सुन लो,
खुश ज्यादा होओगे किसी के, चोट को जब सहलाओगे।

जान बचाने में जो सुख है, कोई कातिल क्या जाने,
तुम ये ‘अनघ’ करके देखो तो, एक नया सुख पाओगे।

49 टिप्‍पणियां:

  1. अच्छी ग़ज़ल, जो दिल के साथ-साथ दिमाग़ में भी जगह बनाती है।

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  2. चोट किसी को देते हो खुश होते हो लेकिन सुन लो,
    खुश ज्यादा होओगे किसी के, चोट को जब सहलाओगे।

    Bahut Umda...

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  3. सटीक कथ्य की बहुत सहज रूप में प्रस्तुति !

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  4. औरों से तो झूठ कहोगे, ख़ुद को क्या समझाओगे।
    तनहाई में जब तुम ख़ुद से, अपनी बात चलाओगे।
    प्रसन्न बदन चतुर्वेदी साहब,खूब सूरत मतला ,makte का भी ज़वाब नहीं .पहली मुलाकत में ही आपके मुरीद हो गए ,

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  5. झूठ, फरेब, दगाबाजी, नफरत, बेइमानी, मक्कारी,
    करते हो, छलते हो सबको; पर कबतक छल पाओगे।


    जीने की खातिर दुनिया में, तुम ये करते हो माना,
    लेकिन औरों को दुख देकर, क्या सुख से जी पाओगे।

    चोट किसी को देते हो खुश होते हो लेकिन सुन लो,
    खुश ज्यादा होओगे किसी के, चोट को जब सहलाओगे।

    ..bahut sundar sarthak prastuti..

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  6. कुछ लम्हें ऐसे आते हैं, इन्सां जब पछताता है,
    ऐसे लम्हें जब आयेंगे, तुम भी बहुत पछताओगे।

    ... सुंदर गज़ल ...बहुत उम्दा सोच..

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  7. जीने की खातिर दुनिया में, तुम ये करते हो माना,
    लेकिन औरों को दुख देकर, क्या सुख से जी पाओगे।
    अच्छी गज़ल

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  8. बहुत बढिया गजल है। बधाई स्वीकारें।

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  9. बहुत अच्छी गजल है ... बधाई...

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  10. वाह! आजकल सक्रीय हैं। पढ़कर खुशी हुई।

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  11. मनभावन ....
    शुभकामनायें आपको !

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  12. जीने की खातिर दुनिया में, तुम ये करते हो माना,
    लेकिन औरों को दुख देकर, क्या सुख से जी पाओगे।

    अच्छे भाव, अच्छी शायरी।

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  13. जान बचाने में जो सुख है, कोई कातिल क्या जाने,
    तुम ये करके देखो कातिल, एक नया सुख पाओगे।
    beautiful lines.

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  14. जीवन संघर्ष ही तो है ! इसे जीने की कला चाहिए ! बहुत सुन्दर ! बधाई चतुर्वेदी जी !

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  15. औरों से तो झूठ कहोगे, ख़ुद को क्या समझाओगे।
    तनहाई में जब तुम ख़ुद से, अपनी बात चलाओगे।

    मतला कमाल का है । बहुत अच्छी ग़ज़ल ।

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  16. खुश ज्यादा होओगे किसी के, चोट को जब सहलाओगे।

    ग़ज़ल क्या है जीवन जीने का फलसफा है
    जो बाँध ले गाँठ हो जाये जीवन सुफला है ....

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  17. अच्छी रचना । गायन सुनकर एकबारगी तो लगा कि किसी बहुत पुरानी फिल्म का गीत है । ब्लाग पर आए अच्छा लगा ।

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  18. बेहतरीन सामयिक गज़ल....
    हर शेर दाद के काबिल है....!!

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  19. "झूठ, फरेब, दगाबाजी, नफरत, बेइमानी, मक्कारी,
    करते हो, छलते हो सबको; पर कबतक छल पाओगे"

    आंखिर कब तक ! ......
    सार्थक भाव....आभार.

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  20. सुभानाल्लाह ....बहुत ही खुबसूरत ।

    सबसे पहले हमारे ब्लॉग पर आपकी टिप्पणी का तहेदिल से शुक्रिया.........आज पहली बार आपके ब्लॉग पर आना हुआ...........पहली ही पोस्ट दिल को छू गयी......कितने खुबसूरत जज्बात डाल दिए हैं आपने..........बहुत खूब...........आज ही आपको फॉलो कर रहा हूँ ताकि आगे भी साथ बना रहे|

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    एक गुज़ारिश है ...... अगर आपको कोई ब्लॉग पसंद आया हो तो कृपया उसे फॉलो करके उत्साह बढ़ाये|

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  21. हम सबका जीवन ऐसा ही है। परन्तु जीवन का स्पंदन आपके इन अनुभवों में ही है।

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  22. पहली बार आना हुआ आपके ब्लॉग पर...
    और वो भी सार्थक रहा.....
    कई रचनाएं पढ़ीं...और सब की सब बेहतरीन....!!

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  23. चोट किसी को देते हो खुश होते हो लेकिन सुन लो,
    खुश ज्यादा होओगे किसी के, चोट को जब सहलाओगे।

    जान बचाने में जो सुख है, कोई कातिल क्या जाने,
    तुम ये करके देखो कातिल, एक नया सुख पाओगे।

    vah bhai chaturvedi ji bilkul maja gaya .....bilkul shandar gajal.

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  24. चोट किसी को देते हो खुश होते हो लेकिन सुन लो,
    खुश ज्यादा होओगे किसी के, चोट को जब सहलाओगे।

    जान बचाने में जो सुख है, कोई कातिल क्या जाने,
    तुम ये करके देखो कातिल, एक नया सुख पाओगे।

    वाह वाह जीवन का सार समझा दिया इस गज़ल ने ।
    बेहतरीन ।

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  25. जीने की खातिर दुनिया में, तुम ये करते हो माना,
    लेकिन औरों को दुख देकर, क्या सुख से जी पाओगे।
    ........... बेहतरीन प्रस्तुति हेतु आभार.....

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  26. इस ग़ज़ल का हर एक शेर नगीना है .... इस शेर की जितनी दाद दी जाये उतनी ही कम....
    चोट किसी को देते हो खुश होते हो लेकिन सुन लो,
    खुश ज्यादा होओगे किसी के, चोट को जब सहलाओगे।

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  27. बहुत बहुत धन्यवाद् की आप मेरे ब्लॉग पे पधारे और अपने विचारो से अवगत करवाया बस इसी तरह आते रहिये इस से मुझे उर्जा मिलती रहती है और अपनी कुछ गलतियों का बी पता चलता रहता है
    दिनेश पारीक
    मेरी नई रचना

    कुछ अनकही बाते ? , व्यंग्य: माँ की वजह से ही है आपका वजूद: एक विधवा माँ ने अपने बेटे को बहुत मुसीबतें उठाकर पाला। दोनों एक-दूसरे को बहुत प्यार करते थे। बड़ा होने पर बेटा एक लड़की को दिल दे बैठा। लाख ...

    http://vangaydinesh.blogspot.com/2012/03/blog-post_15.html?spref=bl

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  28. सभी शेर बहुत अच्छे. अर्थपूर्ण और संदेशप्रद. शुभकामनाएँ.

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  29. बहुत सही कहा है....
    दर्द देने में मजा कहा...
    दर्द बांटने मे मजा है..
    बेहतरीन भाव अभिव्यक्ति.....

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  30. चोट किसी को देते हो खुश होते हो लेकिन सुन लो,
    खुश ज्यादा होओगे किसी के, चोट को जब सहलाओगे।

    बहुत सार्थक आत्मविश्लेषण...

    मेरे ब्लॉग पर आने के लिए आभार.

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  31. बेहद खूबसूरत गज़ल....

    हर शेर लाजवाब...
    दरअसल पूरा ब्लॉग काबिले तारीफ़...
    आज पहली बार आना हुआ..

    सादर.
    अनु

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  32. बहुत ही लाजवाब गज़ल ... हर शेर छा गया ... सीधे दिल को जाती है ...

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  33. बहुत बेहतरीन रचना....

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  34. बहुत सुंदर ग़ज़ल,बहुत अच्छी प्रस्तुति!

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  35. बहुत हि बढिया गज़ल जो आत्म विष्लेषण के लिए उत्प्रेरित कर रही है|
    अपने ब्लॉग पर आपकी टिपण्णी पर आपको क्लिक किया और यहाँ मुझे खजाना मिल गया
    पूरा का पूरा ब्लॉग जोरदार है|आपके मुखाग्र वृन्द से गाए गीत गज़ल एवं भजन
    पूरी तरह भाव विभोर कर देने वाली है|

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