मित्रों ! उत्तराखंड की
घटना ने एक ऐसा घाव छोड़ा है जो शायद बरसों तक नहीं भर सकता | सबसे ज्यादा दुःख तो तब
हुआ जब उस समय की कई घटनाओं के बारे में पता चला | कोई पानी बिना मर रहा था और कुछ
लोग उस समय पानी का सौदा कर रहे थे और २०० रुपये अधिक दाम एक बोतल पानी का वसूल
रहे थे | कुछ उस समय लाशों पर से गहने उतार रहे थे, और इसके लिए उन्होनें उन शवों
की उंगलियाँ काटने से गुरेज नहीं किया | उनके सामने कई लोग मदद के लिए पुकार रहे
थे मगर उन्होंने उन्हें अनसुना कर अपना काम जारी रखा | क्या हो गया है हमारे समाज
को ? मानवता को ? कुछ पंक्तियाँ अपने–आप होंठ गुनगुनाते गए जिन्हें मैं आप को
प्रेषित कर रहा हूँ |
बीते पल ये कहते
गुजरे, संभलो आगे और पतन है |
लुटे हुए को लूट
रहे हैं, मरे हुए को काट रहे हैं;
कुछ ऐसे हैं आफ़त में
भी; रुपये, गहने छांट रहे हैं;
मरते रहे कई पानी
बिन, वे अपने धंधे में मगन हैं......
जो शासक हैं देख
रहे हैं, उनको बस अपनी चिंता है;
मरती है तो मर
जाए ये, ये जनता है वो नेता हैं;
आग लगाने खड़े हुए
हैं जनता ओढ़े हुए कफ़न है...
भर जाते हैं घाव
बदन के, मन के जख्म नहीं भरते;
आफ़त ही ये ऐसी आई,
करते भी तो क्या करते;
क्या वे फिर से
तीर्थ करेंगे, उजड़ा जिनका ये जीवन है...
Copyright@PBChaturvedi
ऐसी घटनाएं इंसानीयत खत्म होना बयां करती है। आपकी संवेदनशील आत्म विह्वल हो थरथरा रही है नतिजन चंद शब्दों में आपने समय को बांधा।
जवाब देंहटाएंबहुत सटीक और सार्थक लेखन , अब अगर नहीं सम्हले तो आगे पतन ही पतन है ।
जवाब देंहटाएंसचमुच मानवता तारतार है .....सार्थक लेखन
जवाब देंहटाएंऐसे ही परख होती है कि आदमी कितना आदमी है!
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति-
जवाब देंहटाएंबधाई-
बेहद शर्मनाक घटना की हकीकत को बेहद संजीदगी से शब्दों के मध्यम से व्यक्त है
जवाब देंहटाएंगहरा क्षोभ और दर्द लिए है रचना .... शर्म की बात है ... इन्सान कैसे दूसरे की मजबूरी का फायदा उठता है ...
जवाब देंहटाएंबेहद शर्मनाक स्थिति...अंतस को झकझोरती बहुत सुन्दर और सटीक प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर।
जवाब देंहटाएंआखिर ऐसा क्यूँ ?
जवाब देंहटाएंबस यही प्रश्न जहन में उठता है
आखिर मानवता कहाँ चली गई ....
मर्मस्पर्शी रचना
आज के हालात पर सटीक रचना ... मानवता नाम का शब्द अब क्या लोगो के शब्द कोष से मिट ही जायेगा ??
जवाब देंहटाएंबहुत ही मार्मिक पंक्तियां।
जवाब देंहटाएंशर्म की तो बात है ही, पर इन्हें शर्म कहां आती है? बहुत सटीक.
जवाब देंहटाएंरामराम.
man ke jhakhm nahin bharte ....!!
जवाब देंहटाएंsach likha hai ...!!bahut sharmanaak laga sab sun kar ,sab padh kar ....!!
अपनी भावनाओं को बहुत ही सुन्दर शब्दों में व्यक्त किया है आपने..
जवाब देंहटाएंउत्तराखण्ड की पीड़ा गीत में उतर आई है।
जवाब देंहटाएंइंसानियत शर्मसार है। संवेदनशील कविता में आपने सबकी भावनाओं को रूप दिया है।
जवाब देंहटाएंये घटनाएँ मानवता को शर्मसार करने वाली हैं. क्या कहें.
जवाब देंहटाएंबेहतरीन मार्मिक प्रस्तुति.
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जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
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