मित्रों ! आज मैं एक अपनी शुरुआती दौर की ग़ज़ल अपनी आवाज़ में प्रस्तुत कर रहा हूँ | इसी रचना से मैंने अपने ब्लॉग की शुरुआत की थी | इस रचना का संगीत-संयोजन भी मैंने किया है | आप से अनुरोध है कि आप मेरे Youtube के Channel पर भी Subscribe और Like करने का कष्ट करें ताकि आप मेरी ऐसी रचनाएं पुन: देख और सुन सकें | आशा ही नहीं वरन पूर्ण विश्वास है कि आप इस रचना को अवश्य पसंद करेंगे |
इस रचना का असली आनंद Youtube पर सुन कर ही आयेगा, इसलिए आपसे अनुरोध है कि आप मेरी मेहनत को सफल बनाएं और वहां इसे जरूर सुनें...
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वो नहीं मंजिलों की डगर आदमी ।
उसके मन में है हैवान बैठा हुआ,
आ रहा है हमें जो नज़र आदमी ।
नफरतों की हुकूमत बढ़ी इस कदर,
आदमी जल रहा देखकर आदमी ।
दोस्त पर भी भरोसा नहीं रह गया,
आ गया है ये किस मोड़ पर आदमी ।
क्या करेगा ये दौलत मरने के बाद,
मुझको इतना बता सोचकर आदमी ।
इस जहाँ में तू चाहे किसी से न डर ,
अपने दिल की अदालत से डर आदमी ।
हर बुराई सुराखें है इस नाव की,
जिन्दगी नाव है नाव पर आदमी ।
आदमी है तो कुछ आदमीयत भी रख,
गैर का गम भी महसूस कर आदमी ।
तू समझदार है ना कहीं और जा,
ख़ुद से ही ख़ुद कभी बात कर आदमी ।
Copyright@PBChaturvedi
बहुर बढिया..आभार
जवाब देंहटाएंबहुत बेहतरीन लिखा है आपने.. चतुर्वेदी जी... हमारी बधाई..
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर .....
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर !
जवाब देंहटाएंबहुत खूब सुन्दर प्रस्तुति ..
जवाब देंहटाएंवाह! बहुत खूबसूरत गजल ,
जवाब देंहटाएंbahut khubasurat prastuti aapki,meri hardik shubh kamanaye....
जवाब देंहटाएं--आनंद
आभार आदरणीय-
बेहद प्रभावशाली ग़ज़ल है , बधाई स्वीकारें !!
जवाब देंहटाएंkhubsurat
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंप्रभावशाली ग़ज़ल .... बधाई...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर गजल !
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर और बेहतरीन गजल...
जवाब देंहटाएं:-)
बहुत सुंदर गज़ल और उतनी ही खूबसूरत प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंवाह बहुत बढ़िया |
जवाब देंहटाएंwaaaahhhh gajab ..umda gajal ..or sath hi ise apni awaz me jo apne prastuti di bahut khub .. badhayi :)
जवाब देंहटाएंनफरतों की हुकूमत बढ़ी इस कदर ,
जवाब देंहटाएंआदमी जल रहा देख कर आदमी।
सुन्दर प्रस्तुति। सुन्दर बंदिश भाव पूर्ण अपेक्षाएं आज के आदमी
से।
वाहवाही ही काफी नहीं है इन पंक्तियों के लिए। दिल से बधाई इतनी बढ़िया प्रस्तुति के लिए।
जवाब देंहटाएंbahut sundar prastuti.. uttam rachna. badhai sweekar karein
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर लिखा है ...गाया भी बढ़िया है ...बहुत अच्छी प्रस्तुति ....
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर ..... गज़ल और गायकी दोनों ही बेहतरीन ।
जवाब देंहटाएंbahut sunder gazal aur gayki ka kya kahna
जवाब देंहटाएंbahut bahut badhai
rachana
behtareen gazal bhi aur gayak bhi
जवाब देंहटाएंचतुर्वेदी जी ! बहुत खुबसूरत ग़ज़ल \आपकी गायकी भी बहुत सुन्दर है !
जवाब देंहटाएंबेहतरीन ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर ग़ज़ल और प्रस्तुति ......
जवाब देंहटाएंवाह...
जवाब देंहटाएंलाजवाब गज़ल ... और आवाज़ जो बस मज़ा ही आ गया ...
जवाब देंहटाएंकमाल है ...
बहुत सुंदर व गज़ब की अनुभूति जगाती आपकी कृति , प्रसन्ना भाई धन्यवाद
जवाब देंहटाएंनया प्रकाशन -: जानिये कैसे करें फेसबुक व जीमेल रिमोट लॉग आउट
sundar gazal or mohak prastuti....
जवाब देंहटाएंवास्तव में जादू के पल
जवाब देंहटाएंdil ke bhawon ki prastuti ne dil ko gadgad kar diya ....
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा ग़ज़ल और उसकी ख़ूबसूरत प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ग़ज़ल आदरणीय
जवाब देंहटाएंबेहतरीन ग़ज़ल..... प्रभावी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंक्यों भला इस बात को समझा नहीं हर आदमी
जवाब देंहटाएंबौट उम्दा और लाजवाब !
जवाब देंहटाएंखुद से ही खुद कभी बात कर आदमी
जवाब देंहटाएंसशक्त अभिव्यंजना।
बहुत सटीक और खरी रचना ....
जवाब देंहटाएंwah bhai chaturvedi ji maine gajal suni
जवाब देंहटाएंप्रसन्न बदन जी आपकी ग़ज़ल आदमी को वाकई सोचने पर मज़बूर करती है।
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