सोमवार, 20 अप्रैल 2009

गीत/प्रसन्नवदन चतुर्वेदी/मैं क्यूँ औरो के गीत लिखूं

ये गीत आप के सामने प्रस्तुत है जो मुझे बहुत प्रिय है ,देंखू आप को कैसा लगता है ......  

मैं क्यों औरों के गीत लिखूँ , क्यूँ नारी का श्रृंगार लिखूँ । 

मैं क्यूँ ना अपनी ग़ज़लों में अपने गीतों में प्यार लिखूँ । 

 

क्यूँ राजाओं की गाथाएं , मेरी रचनाओं में आएं; 

व्यभिचार,छल,कपट और युद्ध की बातें कवि क्योंकर गाए; 

सत्तालोलुप,कामी को क्यूँ मैं ईश्वर का अवतार लिखूँ.......  

 

सुन्दर चेहरा, काली आँखें,होठों की लाली क्या लिखना; 

सबमें होती हैं जो बातें वो, बात निराली क्या लिखना; 

मैं क्यूँ नारी के अंगो का अश्लील भरा विस्तार लिखूँ........ 

 

ये ठंडी हवा,बादल,पर्वत, ये बहती नदिया, ये सागर; 

ईश्वर ने दिया है जो उनमें है प्रेम का कद सबसे ऊपर; 

मेरी इच्छा है जीवन भर ये प्रकृति का उपहार लिखूँ......

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2 टिप्‍पणियां:

  1. ये ठंडी हवा,बादल,पर्वत, ये बहती नदिया, ये सागर;
    ईश्वर ने दिया है जो उनमें है प्रेम का कद सबसे ऊपर;
    मेरी इच्छा है जीवन भर ये प्रकृति का उपहार लिखूँ......
    Prasann ji,bahut hi sundar geet hai,shbdon ka chayan aur pravaah dekhtey hi banta hai.
    sach hi hai...prakriti se adhik sachcha aur sundar koi nahin.

    aap ki awaaz mein sunNe ki pratiksha hai.

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