रविवार, 3 मई 2009

गीत/प्रसन्नवदन चतुर्वेदी/कुछ हमसे सुनो कुछ....

कुछ हमसे सुनो कुछ हमसे कहो। 

चाँदनी रात है, ऐसे चुप ना रहो।  

 

बडी़ मुश्किल से फ़ुरसत के पल आते हैं, 

होके चुप इन पलों को न जाया करो; 

प्यार के इस समुन्दर में आओ बहो...... 

चाँदनी रात है, ऐसे चुप ना रहो............  

 

हर जगह भीड़ है हर जगह लोग हैं, 

ऐसी तनहाई मिलती है जल्दी नहीं; 

जहाँ कोई न हो जहाँ कोई न हो........ 

चाँदनी रात है, ऐसे चुप ना रहो............ 

 

लब अगर बात करने से कतरा रहे, 

बात करने की तरकीब यूं सीख लो; 

अपनी नज़रों से मेरी नज़र में कहो...... 

चाँदनी रात है, ऐसे चुप ना रहो............

Copyright@PBChaturvedi

4 टिप्‍पणियां:

  1. बडी़ मुश्किल से फ़ुरसत के पल आते हैं,
    होके चुप इन पलों को न जाया करो;
    प्यार के इस समुन्दर में आओ बहो......
    चाँदनी रात है, ऐसे चुप ना रहो............

    wah chaturvedi ji ,
    aapke geeton men anand aa raha hai.
    badhai.

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  2. लब अगर बात करने से कतरा रहे,
    बात करने की तरकीब यूं सीख लो;
    अपनी नज़रों से मेरी नज़र में कहो......
    चाँदनी रात है, ऐसे चुप ना रहो............

    waaah Prasann jee!badaa hi madhur geet hai...

    isey dhun ke saath apni awaaz mein bhi kabhi sunaayeeyega.

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  3. prasaan ji aapne mere man ko is geet se prasaan kar diya .. shukria..

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