मुझे याद आ रहे हैं ,वो ज़िन्दगी के दिन।
कुछ मेरे ग़म के दिन,कुछ मेरी खुशी के दिन।
बचपन के खेल सारे, नानी की वो कहानी;
ससुराल जो गई है, उस बहन की निशानी;
झगडा़ करना,रोना और फिर हसीं के दिन......
कुछ और बडा़ होना,कुछ और सोचना;
ख्वाबों में,खयालों में; आकाश चूमना;
आज़ाद हर तरह से, कुछ बेबसी के दिन......
गप-शप वो दोस्तों के,और हम भी उसमें शामिल,
वो शोर वो ठहाके,यारों की हसीं महफ़िल;
वो किताब-कापियों के,वो दिल्लगी के दिन.....
कुछ उम्र बढी़ और, नौजवान हम हुए;
कितनी ही हसीनों के,अरमान हम हुए;
जब सोच में तब्दीली हुई उस घडी़ के दिन.....
अब ख्वाब में आने लगे,जुल्फ़ों के वो साये;
फिर जो भी हुआ उसको,अब कैसे हम बतायें;
दीवाने हो गये हम,दीवानगी के दिन.....
फिर जैसे बहार आई,घर मेरा खिल गया;
बावस्ता उम्र भर के,इक दोस्त मिल गया;
फिर फूल कुछ खिले और, नई रौशनी के दिन.....
बच्चे बडे़ हुए अपनी उम्र बढ़ गई;
चेहरे पे झुर्रियों की,सौगात चढ़ गई;
हुए खत्म धीरे-धीरे,जीवन की लडी़ के दिन.....
Copyright@PBChaturvedi
आपका गीत अच्छा लगा ,परन्तु प्रयोग नया नहीं । जीवन की संध्या में बीता वक्त खूब याद आता है ।
जवाब देंहटाएंप्रेम जी ने सही कहा गीत नया नहीं है मेरी ऐसी हे कविता मेरे ब्लोग पर छप छुकी है और भी कई बलाग्ज़ पर ऐसी रचनायें हैं वसे गीत सुन्दर बन पडा है बहुत बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया रचना
जवाब देंहटाएं---------------
चाँद, बादल और शाम
bahut badiya prastuti hai..........
जवाब देंहटाएंWAH CHATURVEDI JI , POORA JIWAN HI SAMA GAYA KAVITA MEN. BAHUT KHOOB.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर परंतु आखिर में एैसा लिखते
जवाब देंहटाएंबच्चे बडे़ हुए अपनी उम्र बढ़ गई;
चेहरे पे झुर्रियों की,सौगात चढ़ गई;
लौट आये फिर से अपने आजाद सारे दिन ।...