अपनी आवाज़ में एक ग़ज़ल [ "मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन" पर आधारित ] प्रस्तुत कर रहा हूँ...
इस रचना का वास्तविक आनंद Youtube पर सुन कर ही आयेगा, इसलिए आपसे अनुरोध है कि आप मेरी मेहनत को सफल बनाएं और वहां इसे जरूर सुनें...
इस रचना का वास्तविक आनंद Youtube पर सुन कर ही आयेगा, इसलिए आपसे अनुरोध है कि आप मेरी मेहनत को सफल बनाएं और वहां इसे जरूर सुनें...
बड़ी मुश्किल है बोलो क्या बताएं।
न पूछो कैसे हम जीवन बिताएं।
अदाकारी हमें आती नही है,
ग़मों में कैसे अब हम मुस्कुराएं।
अँधेरा ऐसा है दिखता नही कुछ,
चिरागों को जलाएं या बुझाएं।
फ़रेबों,जालसाजी का हुनर ये,
भला खुद को ही हम कैसे सिखाएं।
ये माना मुश्किलों की ये घडी़ है,
चलो उम्मीद हम फिर भी लगाएं।
सियासत अब यही तो रह गई है,
विरोधी को चलो नीचा दिखाएं।
अगर सच बोल दें तो सब खफ़ा हों,
बनें झूठा तो अपना दिल दुखाएं।
न पूछो कैसे हम जीवन बिताएं।
अदाकारी हमें आती नही है,
ग़मों में कैसे अब हम मुस्कुराएं।
अँधेरा ऐसा है दिखता नही कुछ,
चिरागों को जलाएं या बुझाएं।
फ़रेबों,जालसाजी का हुनर ये,
भला खुद को ही हम कैसे सिखाएं।
ये माना मुश्किलों की ये घडी़ है,
चलो उम्मीद हम फिर भी लगाएं।
सियासत अब यही तो रह गई है,
विरोधी को चलो नीचा दिखाएं।
अगर सच बोल दें तो सब खफ़ा हों,
बनें झूठा तो अपना दिल दुखाएं।
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