कोरोना काल में हुई परिस्थितियों पर यह रचना प्रस्तुत है.....
कितने झंझावात सहे हैं, हम ये दुःख भी सह लेंगे
|
दर-दर भटका करते थे हम, अपने घर में रह लेंगे|
अरसे बाद मिली है फुरसत, हर अपने से मिलने की,
कुछ सुन लेंगे उनकी हम कुछ अपने दिल की कह लेंगे
|
यन्त्रों का युग है जीवन भी हम यन्त्रों-सा जीते
हैं,
मानव-जीवन की सरिता ये, इसमें कुछ दिन बह लेंगे
|
चिंता इसकी, उसकी, सबकी, अक्सर करते रहते थे,
कब सोचा था बिन चिंता के, हम सब कुछ दिन रह
लेंगे |
नदियों की कल-कल मीठी है, आज हवा भी महकी-सी,
मन की सन्दूकों में ऐसी, यादें कर रख तह लेंगे |
ना खोना है ना पाना कुछ, ऐसे पल कब मिलते हैं,
औरों को तो देख चुके हैं, खुद को कुछ दिन गह
लेंगे |Copyright@PBChaturvedi प्रसन्न वदन चतुर्वेदी
वाह!!!
जवाब देंहटाएंसुन्दर सार्थक और सटीक सृजन।
पढने और सराहने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद सुधा जी......
हटाएंवाह!चतुर्वेदी जी ,बेहतरीन!!
जवाब देंहटाएंशुभा जी, पढने और सराहने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद......
हटाएंसुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंओंकार जी,पढ़ने और सराहने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद......
हटाएंना खोना है ना पाना कुछ, ऐसे पल कब मिलते हैं,
जवाब देंहटाएंऔरों को तो देख चुके हैं, खुद को कुछ दिन गह लेंगे |
बहुत सटीक !
पढने और सराहने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद संगीता जी......
हटाएंधन्यवाद पम्मी जी....
जवाब देंहटाएं