सोमवार, 13 अप्रैल 2020

ग़ज़ल : कितने झंझावात सहे हैं


कोरोना काल में हुई परिस्थितियों पर यह रचना प्रस्तुत है.....

कितने झंझावात सहे हैं, हम ये दुःख भी सह लेंगे |
दर-दर भटका करते थे हम, अपने घर में रह लेंगे|

अरसे बाद मिली है फुरसत, हर अपने से मिलने की,
कुछ सुन लेंगे उनकी हम कुछ अपने दिल की कह लेंगे |

यन्त्रों का युग है जीवन भी हम यन्त्रों-सा जीते हैं,
मानव-जीवन की सरिता ये, इसमें कुछ दिन बह लेंगे |

चिंता इसकी, उसकी, सबकी, अक्सर करते रहते थे,
कब सोचा था बिन चिंता के, हम सब कुछ दिन रह लेंगे |

नदियों की कल-कल मीठी है, आज हवा भी महकी-सी,
मन की सन्दूकों में ऐसी, यादें कर रख तह लेंगे |

ना खोना है ना पाना कुछ, ऐसे पल कब मिलते हैं,
औरों को तो देख चुके हैं, खुद को कुछ दिन गह लेंगे |

Copyright@PBChaturvedi प्रसन्न वदन चतुर्वेदी

9 टिप्‍पणियां:

  1. वाह!!!
    सुन्दर सार्थक और सटीक सृजन।

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  2. वाह!चतुर्वेदी जी ,बेहतरीन!!

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  3. ना खोना है ना पाना कुछ, ऐसे पल कब मिलते हैं,
    औरों को तो देख चुके हैं, खुद को कुछ दिन गह लेंगे |
    बहुत सटीक !

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